राजस्थान में विधायक कंवरलाल मीना की सदस्यता को लेकर खूब सियासत चल रही है विधायक कंवरलाल मीना को तीन साल की सजा सुनाई गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा है। साथ ही कंवरलाल मीना को सरेंडर करने का आदेश दिया है। जिसके बाद कांग्रेस नेता लगातार कंवरलाल मीना की सदस्यता रद्द करने की मांग कर रहे हैं। क्योंकि संविधान में प्रावधान है कि अगर किसी भी विधायक को 3 साल से ज्यादा की सजा होती है तो उसकी सदस्यता स्वतः ही रद्द हो जाती है। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी द्वारा कोई कार्रवाई नहीं किए जाने से यह मुद्दा गरमा गया है। वहीं विपक्ष ने विधानसभा में गठित मौजूदा समितियों में किए गए बदलाव की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए हैं. जिसमें कहा है कि यह संविधान की भावना के खिलाफ है. इन दोनों मुद्दों को लेकर कांग्रेस विधायक मंगलवार (20 मई) को राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी से मिलने पहुंचे।
कांग्रेस विधायक दल के प्रतिनिधिमंडल ने वासुदेव देवनानी से की मुलाकात
राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के प्रतिनिधिमंडल ने विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी से मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने किया। उन्होंने भाजपा विधायक कंवरलाल मीना की सदस्यता तत्काल रद्द करने की मांग उठाई। इस दौरान रफीक खान, मनोज मेघवाल, रामकेश मीना, हाकम अली खान, विकास चौधरी और राजेंद्र पारीक इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल थे।विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को बताया कि अंता विधायक कंवरलाल मीना की अयोग्यता पर राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट निर्णय लिया जा चुका है, लेकिन इसके बावजूद विधानसभा सचिवालय ने अभी तक सदस्यता रद्द करने की कार्रवाई नहीं की है, जो एक गंभीर संवैधानिक चूक है। यह न्यायिक आदेश का उल्लंघन है। जब न्यायालय ने किसी जनप्रतिनिधि की सदस्यता पर निर्णय दे दिया है, तो विधानसभा को बिना किसी राजनीतिक दबाव के निष्पक्ष कार्रवाई करनी चाहिए।
कानूनी विकल्पों पर विचार किया जाएगा
साथ ही कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने यह भी कहा है कि अगर इस मामले में देरी जारी रही तो वे इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाएंगे और जरूरत पड़ने पर कानूनी विकल्पों पर भी विचार किया जाएगा। विधानसभा अध्यक्ष को ज्ञापन सौंपते हुए विधायकों ने कहा कि वर्तमान में गठित समितियों में बदलाव की प्रक्रिया एकतरफा और संविधान की भावना के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि विपक्ष से उचित परामर्श नहीं किया गया, जिससे विधानसभा की लोकतांत्रिक परंपराएं प्रभावित हो रही हैं।बता दें, विपक्ष के इन मुद्दों पर वासुदेव देवनानी ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। साथ ही सवाल उठ रहे हैं कि अगर संविधान में नियम है तो विधानसभा अध्यक्ष इस पर फैसला क्यों नहीं ले रहे हैं।
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