गर्मियों का मौसम आते ही उत्तर भारत में एक शब्द बार-बार सुनाई देता है—"लू"। आम बोलचाल में जब तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को पार करता है और गर्म हवाएं शरीर को झुलसाने लगती हैं, तो लोग कहते हैं, "बाहर लू चल रही है, संभल के रहना!" लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह लू आखिर होती क्या है? यह कैसे बनती है, कहाँ चलती है, और क्यों इसे "बहती आग" कहा जाता है?आज हम जानेंगे कि लू के पीछे का विज्ञान क्या है, यह किन क्षेत्रों में ज्यादा चलती है, और इससे कैसे बचा जा सकता है।
लू क्या है?
लू एक प्रकार की स्थानीय, अत्यधिक गर्म और शुष्क हवा होती है जो खासतौर पर अप्रैल से जून के बीच भारत के उत्तर-पश्चिमी और मध्य भागों में चलती है। यह हवा दिन के समय चलती है और इसका तापमान अक्सर 45 से 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच सकता है। कई बार यह और अधिक खतरनाक हो जाती है जब हवा की गति तेज हो और वातावरण में नमी शून्य के करीब हो जाए।लू को अंग्रेजी में "Heat Wave" कहते हैं, लेकिन लू एक विशेष प्रकार की हीट वेव है जो उपमहाद्वीप के शुष्क मैदानों में पाई जाती है।
क्यों चलती है लू? – इसके पीछे का विज्ञान
लू के बनने की प्रक्रिया मौसम विज्ञान से जुड़ी हुई है। गर्मियों में जब सूर्य की किरणें सीधी भूमध्यरेखा से ऊपर उत्तर की ओर खिसकती हैं, तब उत्तरी भारत, पाकिस्तान और आसपास के इलाके सूर्य के अत्यंत निकट आ जाते हैं। दिन के समय भूमि अत्यधिक गर्म हो जाती है और इसके कारण धरती की सतह पर स्थित हवा भी तेज़ी से गर्म होने लगती है।
गर्म होने के कारण यह हवा हल्की हो जाती है और ऊपर उठने लगती है, जिससे वायुमंडल में कम दबाव (Low Pressure) बनता है। इस दौरान चारों ओर से गरम, सूखी हवाएं इस क्षेत्र की ओर बहने लगती हैं। इन्हीं हवाओं को "लू" कहा जाता है।विशेष रूप से जब ये हवाएं थार के रेगिस्तान या राजस्थान के सूखे इलाकों से होकर आती हैं, तो इनका तापमान अत्यधिक हो जाता है और ये जीवन के लिए बेहद खतरनाक बन जाती हैं।
किन इलाकों में चलती है लू?
भारत के कई हिस्से लू की चपेट में आते हैं, लेकिन कुछ क्षेत्र इससे विशेष रूप से प्रभावित होते हैं:
राजस्थान: जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर और जोधपुर जैसे रेगिस्तानी क्षेत्र सबसे ज्यादा लू प्रभावित रहते हैं।
उत्तर प्रदेश: आगरा, झांसी, इलाहाबाद और वाराणसी जैसे क्षेत्र मई-जून में तीव्र लू का अनुभव करते हैं।
मध्य प्रदेश: ग्वालियर, भोपाल, रीवा और जबलपुर में भी लू का प्रभाव रहता है।
हरियाणा, पंजाब और दिल्ली: NCR में मई-जून में लू आम बात है।
बिहार और झारखंड: इन राज्यों के कुछ दक्षिणी हिस्सों में लू चलती है।
पाकिस्तान के सिंध और बलूचिस्तान: यहाँ भी लू का असर बहुत प्रबल रहता है।
लू के प्रभाव – शरीर पर क्या असर डालती है?
लू केवल मौसम की समस्या नहीं है, यह स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक है। यदि समय रहते सावधानी न बरती जाए तो यह जानलेवा साबित हो सकती है।
लू के चलते कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं:
हीट स्ट्रोक (लू लगना): शरीर का तापमान 104°F (40°C) से ऊपर चला जाता है।
डिहाइड्रेशन (निर्जलीकरण): पसीने के कारण शरीर से पानी और नमक निकल जाता है।
घबराहट, थकावट और चक्कर आना
नाक से खून आना, उल्टी, बेहोशी
लू के कारण हर साल सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है, खासकर ऐसे लोग जो लंबे समय तक खुले में काम करते हैं – जैसे रिक्शा चालक, मजदूर, पुलिसकर्मी आदि।
लू से बचाव कैसे करें?
लू से बचने के लिए कुछ सामान्य लेकिन बहुत जरूरी सावधानियों का पालन करें:
दोपहर 12 से 4 बजे तक घर से बाहर न निकलें, जब लू सबसे अधिक तीव्र होती है।
सिर ढककर रखें – टोपी, गमछा या छतरी का इस्तेमाल करें।
ठंडे पेय और पानी का खूब सेवन करें – नींबू पानी, छाछ, बेल का शरबत आदि।
हल्के और सूती कपड़े पहनें, जो शरीर को ढक सकें।
तेज धूप में भारी भोजन या व्यायाम न करें।
कूलर या पंखे का प्रयोग करें, यदि संभव हो तो घर में ठंडा वातावरण बनाए रखें।
लू और जलवायु परिवर्तन – क्या है रिश्ता?
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण लू की घटनाएं और भी तीव्र होती जा रही हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी से लू और अधिक तीव्र, लंबी और पहले से अधिक घातक हो रही है। आने वाले वर्षों में यह एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बन सकती है, खासकर शहरों में जहां "हीट आइलैंड इफेक्ट" के कारण तापमान ग्रामीण क्षेत्रों से अधिक होता है।
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