अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को चेतावनी दी कि जो देश अमेरिकी टेक कंपनियों पर डिजिटल टैक्स या डिजिटल सर्विस टैक्स लगाते हैं वो इसे हटा लें नहीं तो उनके निर्यात पर और अधिक टैरिफ़ लगाया जाएगा.
भारत ने हालांकि नॉन रेजिडेंट अमेरिकी टेक कंपनियों पर डिजिटल सर्विस टैक्स यानी इक्वलाइजेशन लेवी ख़़त्म कर दिया था. सरकार ने इसकी घोषणा 2025-26 के बजट में कर दी थी. ये आदेश 1 अप्रैल 2025 से लागू किया गया था.
दरअसल भारत सरकार ने इस उम्मीद में ये टैक्स हटाया था कि इससे ट्रंप सरकार के साथ ट्रेड डील में सुविधा होगी.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ़ लगाने के वक़्त भारत पर नरम रुख़ अपनाएंगे.
लेकिन अब जबकि ट्रंप ने भारत पर 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने का ऐलान कर दिया है तो ये कयास लगाया जा रहा था कि भारत जवाबी कार्रवाई कर सकता है.
भारतीय मीडियामें छपी ख़बरें के मुताबिक भारत सरकार जवाबी कार्रवाई के तहत गूगल की पैरेंट कंपनी अल्फ़ाबेट, मेटा और अमेजन जैसे कंपनियों पर डिजिटल सर्विस टैक्स लगा सकती है. लेकिन भारत सरकार ने इस बारे में कोई बयान नहीं दिया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी है कि जो भी देश अमेरिकी टेक कंपनियों पर टैक्स लगाएगा उसपर अमेरिका जवाबी कार्रवाई करते हुए टैरिफ़ लगा सकता है
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ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर लिखा, ''मैं उन सभी देशों को चेतावनी देता हूं जहां डिजिटल टैक्स, क़ानून, नियम या रेगुलेशन हैं. अगर इन भेदभावपूर्ण कदमों को ख़त्म नहीं किया गया तो मैं अमेरिका का राष्ट्रपति होने के नाते, उन देशों से अमेरिका आने वाले सामान पर और टैरिफ़ लगाऊंगा. साथ ही मैं अमेरिका के बेहद संरक्षित तकनीकों और चिप्स के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दूंगा.''
डोनाल्ड ट्रंप 90 से अधिक देशों पर 10 फ़ीसदी (बेस टैरिफ़) से लेकर 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगा चुके हैं. सबसे अधिक 50 फ़ीसदी टैरिफ़ भारत और ब्राज़ील पर लगाया गया है.
भारत के ख़िलाफ़ 50 फ़ीसदी टैरिफ़ 27 अगस्त 2025 से लागू होगा.
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डिजिटल सर्विस टैक्स वो टैक्स है जो सरकारें उन बड़ी इंटरेशनल टेक कंपनियों पर लगाती हैं, जिनकी वहां फिजिकल मौजूदगी नहीं होती. ये कंपनियां उस देश के बाहर से काम करती हैं.
पारंपरिक तौर पर कॉरपोरेट टैक्स किसी कंपनी पर तभी लगता है जब उसकी उस देश में स्थायी मौजूदगी हो.
लेकिन डिजिटल इकोनॉमी में गूगल, मेटा, अमेजन या नेटफ्लिक्स जैसी कंपनियां किसी देश में बगैर दफ़्तर खोले अरबों रुपये का कारोबार कर सकती हैं .
दरअसल ये कमाई उन पर चलने वाले विज्ञापनों और दूसरी सर्विसेज़ से होती है.
जिन देशों के उपभोक्ताओं से ये कंपनियां कमाई करती हैं उनका तर्क है कि भले ही सर्विस देने वाली कंपनियां उनके यहां फ़िजिकली मौजूद नहीं हैं लेकिन कमाई तो कर रही हैं इसलिए उन्हें टैक्स देना पड़ेगा.
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डिजिटल सर्विस टैक्स आमतौर पर उन विदेशी कंपनियों पर लगाया जाता है जो किसी देश के यूज़र्स से कमाई करती हैं.
ये सर्विस टैक्स कई तरह की सर्विसेज पर लगता हैं. जैसे ऑनलाइन एडवर्टाइजिंग सर्विस. गूगल, मेटा और यूट्यूब ऐसी सर्विस के जरिये पैसा कमाती हैं.
ई-कॉमर्स कंपनियां जैसे अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां भी सामान बेचकर पैसा कमाती हैं.
उबर, एयरबीएनबी जैसी ऑनलाइन मार्केटप्लेस, नेटफ्लिक्स, स्पॉटीफाई जैसी स्ट्रीमिंग सर्विसज़ कंपनियां भी अमेरिकी में बैठे-बैठे किसी भी देश में कमाई करती हैं.
ये कंपनियां यूज़र डेटा से भी कमाई करती हैं यानी वे टारगेटेड एड दिखा कर विज्ञापनदाताओं से पैसे लेती हैं.
भारत में डिजिटल सर्विस टैक्स को 'इक्विलाइजेशन लेवी' यानी समानता कर कहा जाता है.
2016 में इस तरह के विज्ञापनों पर छह फ़ीसदी का टैक्स लगाया गया था. लेकिन 2025-26 के बजट में इसे हटा दिया.
इससे पहले ई-कॉमर्स कंपनियों पर जो दो फ़ीसदी ट्रांजेक्शन लगाया जाता था उसे भी ख़त्म कर दिया गया था.
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कनाडा ने हाल ही में बड़ी अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियों पर लगाए गए टैक्स को वापस लेने का ऐलान किया था. कनाडा ने ये क़दम ठीक उन भुगतानों की पहली किस्त जमा होने से कुछ घंटे पहले उठाया था.
कनाडा को उम्मीद थी इससे अमेरिका के साथ उसकी ट्रेड डील फिर शुरू हो पाएगी. कनाडा की अर्थव्यवस्था अमेरिकी को निर्यात पर काफी ज्यादा निर्भर है.
कनाडा का 80 फ़ीसदी निर्यात अमेरिका को होता है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस टैक्स को 'खुला हमला' बताते हुए व्यापार समझौते पर चल रही बातचीत रद्द कर दी थी और कनाडा से होने वाले आयात पर और अधिक टैरिफ़ लगाने की धमकी दी थी.
यूरोपीय यूनियन के देशों ने भी फिलहाल अमेरिकी डिजिटल कंपनियोंपर डिजिटल सर्विस टैक्स लगाने की योजना वापस ले ली है.
यह क़दम डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिकी टेक दिग्गजों जैसे एप्पल और मेटा के लिए यूरोप में एक बड़ी जीत मानी जा रही है.
यूरोपीय यूनियन और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है. यूरोपीय यूनियन को डर था कि अगर डिजिटल टैक्स लगाया गया तो बात बिगड़ सकती है.
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किसी भी देश में गए बगैर मोटी कमाई करने वाली अमेरिकी टेक कंपनियां ये टैक्स नहीं देना चाहती हैं.
दरअसल ये बड़ी टेक कंपनियां कहती हैं कि उन पर पहले से ही अपने मुख्यालय वाले देश में टैक्स लगता है. अब अलग-अलग देशों का डिजिटल सर्विस टैक्स उन्हें दोहरा टैक्स चुकाने पर मजबूर करता है.
अमेरिका भी इस टैक्स को भेदभाव पूर्ण मानता है.
इस टैक्स का विरोध करने वालों का कहना है कि इसका बोझ स्थानीय छोटे व्यापारियों और उपभोक्ताओं पर पड़ता है, क्योंकि कंपनियां टैक्स का खर्चा सर्विस की कीमत बढ़ाकर वसूल लेती हैं.
ट्रंप डिजिटल सर्विस टैक्स को अमेरिकी टेक कंपनियों के मुनाफे पर सीधा वार मानते हैं और इसे अमेरिकी हितों के ख़िलाफ़ क़रार देते हैं.
यूरोप इसके जरिये रेवेन्यू जुटाने का रणनीति बना रहा था वहीं जबकि चीन अमेरिकी कंपनियों का मार्केट एक्सेस रोककर अपनी घरेलू कंपनियों को बढ़ावा दे रहा था.
इसे ट्रंप अमेरिका के ख़िलाफ़ डिजिटल भेदभाव मानते हैं. इसलिए उन्होंने ज़्यादा टैरिफ़ की धमकी दी है.
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बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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