सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के फ़र्स्ट सेक्रेटरी निकिता एस. ख़्रुश्चेव 1955 में श्रीनगर आए थे. निकिता ख़्रुश्चेव को जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन युवराज कर्ण सिंह ने आमंत्रित किया था.
इस दौरे में निकिता ख़्रुश्चेव ने कहा था कि पाकिस्तान ने उनसे और सोवियत यूनियन के प्रीमियर निकोलाई बुगैनन से कहा था कि वे कश्मीर ना जाएं.
निकिता ख़्रुश्चेव ने कहा था, ''पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कराची में सोवियत राजदूत से कर्ण सिंह के आमंत्रण को स्वीकार नहीं करने का आग्रह किया था.''
निकिता ख़्रुश्चेवने पाकिस्तान के इस आग्रह पर कहा था, ''यह विद्वेषपूर्ण हरकत है. पाकिस्तान अपने कंधों पर कुछ ज़्यादा ही ज़िम्मेदारी ले रहा है. किसी दूसरे देश के आंतरिक मामले में पाकिस्तान का यह अभूतपूर्व हस्तक्षेप है. अतीत में किसी भी देश ने यह कहने का साहस नहीं किया कि हमें क्या करना चाहिए और किसे दोस्त बनाना चाहिए. भारत के साथ हमारा बहुत ही अच्छा संबंध है.''
इस दौरे में ख़्रुश्चेव ने कश्मीर विवाद पर भी विस्तार से बात की थी. ख़्रुश्चेव ने कश्मीर को लेकर कहा था, ''मैं उन देशों का नाम नहीं लेना चाहता हूँ जो कश्मीर मुद्दा उठाने में इसलिए दिलचस्पी रखते हैं क्योंकि यह बहुत चर्चित है.''
ख़्रुश्चेव ने कहा था, ''जो कश्मीर मुद्दे को हवा दे रहे हैं, वे दोनों देशों के बीच नफ़रत के बीज बो रहे हैं. कई देशों को लगता है कि कश्मीर मुस्लिम बहुल है, इसलिए पाकिस्तान के साथ जाना चाहिए. कश्मीर के लोगों ने भारत के साथ रहने का फ़ैसला कर लिया है. कश्मीर के लोग साम्राज्यवादी शक्तियों के हाथ खिलौना नहीं बनना चाहते हैं.''
पाकिस्तान पर ख़्रुश्चेव का ग़ुस्साइस दौरे में ख़्रुश्चेव ने भारत के विभाजन की भी आलोचना की थी और कहा था कि विभाजन धर्म के कारण नहीं हुआ था बल्कि तीसरे देश के कारण हुआ, जो 'बाँटो और राज करो' की नीति पर चल रहा था.
ख़्रुश्चेव ने पाकिस्तान की अमेरिका से क़रीबी की भी आलोचना की थी. पाकिस्तान तब बग़दाद पैक्ट में शामिल हुआ था और ख़्रुश्चेव को यह पसंद नहीं आया था. उन्होंने बग़दाद पैक्ट को सोवियत विरोधी बताया था.
1955 में तुर्की, इराक़, ब्रिटेन, पाकिस्तान और ईरान ने मिलकर 'बग़दाद पैक्ट' बनाया था. बग़दाद पैक्ट को तब डिफ़ेंसिव ऑर्गेनाइज़ेशन कहा गया था. इसमें पाँचों देशों ने अपनी साझी राजनीति, सेना और आर्थिक मक़सद हासिल करने की बात कही थी. यह नेटो की तर्ज़ पर ही था.
श्रीनगर दौरे में ही निकिता ख़्रुश्चेव ने भारत के लिए कहा था, ''हम आपके बहुत क़रीब हैं. अगर आप हमें पर्वत के शिखर से भी बुलाएंगे तो हम आपकी तरफ़ होंगे.''
लेकिन अब न तो सोवियत यूनियन है और न ही 1955 का समय है. सोवियत यूनियन के बिखरने के बावजूद रूस का रुख़ कश्मीर पर बदला नहीं है लेकिन पाकिस्तान को लेकर रूस का रुख़ ख़्रुश्चेव वाला नहीं रहा.
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पीएम मोदी के चीन से वापस आते ही मंगलवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की मुलाक़ात हुई.
इस मुलाक़ात में पुतिन ने शहबाज़ शरीफ़ से कहा कि पाकिस्तान अब भी रूस का पारंपरिक पार्टनर है.
वहीं शहबाज़ शरीफ़ ने पुतिन से कहा कि वह भारत और रूस के संबंधों का सम्मान करते हैं लेकिन पाकिस्तान भी रूस से मज़बूत संबंध बनाना चाहता है. जब शहबाज़ शरीफ़ ऐसा कह रहे थे तो राष्ट्रपति पुतिन सिर हिलाते हुए हामी भर रहे थे.
थिंक टैंक ब्रुकिंग्स इंस्टिट्यूशन की सीनियर फेलो तन्वी मदान ने शहबाज़ शरीफ़ और पुतिन की बातचीत का वीडियो क्लिप एक्स पर रीपोस्ट करते हुए लिखा है, ''मीम्स की दुनिया से अलग असली दुनिया भी है. पुतिन भी किसी एक देश के साथ बंधे नहीं हैं. उन्होंने शहबाज़ शरीफ़ से मुलाक़ात की और कहा कि पाकिस्तान से अच्छा संबंध चाहते हैं. यह कोई नया नहीं है. पहलगाम हमले के बाद रूस के रुख़ पर लोगों ने ध्यान नहीं दिया क्योंकि हर कोई ट्रंप में ही उलझा था.''
तन्वी मदान को लगता है कि पहलगाम में हमले के बाद रूस ने भारत को निराश किया लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया.
तन्वी मदान ने चार मई को एक्स पर एक पोस्ट में लिखा था, ''12 सालों से भी कम समय में रूस ने यूक्रेन पर दो बार हमला किया और वह भारत से कह रहा है कि पाकिस्तान से विवाद बातचीत के ज़रिए ख़त्म करो.''
थिंक टैंक ओआरएफ़ में भारत-रूस संबंधों के विशेषज्ञ एलेक्सेई ज़ाखरोव ने एक्स पर शहबाज़ शरीफ़ और पुतिन की मुलाक़ात को लेकर लिखा है, ''मोदी के चीन छोड़ने के बाद पुतिन और शहबाज़ शरीफ़ ने द्विपक्षीय एजेंडे पर चर्चा की. पुतिन ने पाकिस्तान को पारंपरिक साझेदार कहा, ट्रेड बढ़ाने की बात कही, यूएनएससी में सहयोग बढ़ाने के लिए कहा और शहबाज़ शरीफ़ को मॉस्को आने के लिए निमंत्रण दिया. शहबाज़ शरीफ़ ने पुतिन को दक्षिण एशिया में संतुलनवादी नीति के लिए शुक्रिया भी कहा.''

पुतिन ने पाकिस्तान को पारंपरिक पार्टनर कहा है. वाक़ई पाकिस्तान रूस का पारंपरिक पार्टनर रहा है?
दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में रूसी और मध्य एशिया अध्ययन केंद्र के प्रोफ़ेसर डॉ राजन कुमार कहते हैं, ''पाकिस्तान कभी भी रूस का पारंपरिक पार्टनर नहीं रहा है. वो चाहे सोवियत यूनियन का ज़माना हो या उसके बिखर जाने के बाद का. अगर ब्रिटिश इंडिया में भी देखें तो उनकी दुश्मनी ज़ार से जगज़ाहिर थी. अब पुतिन पाकिस्तान को पारंपरिक पार्टनर बता रहे हैं लेकिन यह ऐतिहासिक तथ्यों से परे है.''
प्रोफ़ेसर राजन कुमार कहते हैं, ''भारत ने रूस से स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर आपकी क़रीबी पाकिस्तान से बढ़ती है तो निश्चित तौर पर हमारे संबंध प्रभावित होंगे. लेकिन पाकिस्तान हमेशा से कोशिश करता रहा है कि वह चीन के ज़रिए रूस से क़रीबी बढ़ाए.''
''ज़ाहिर है कि पाकिस्तान और रूस दोनों चीन के अहम पार्टनर हैं. पाकिस्तान की रणनीति यह है कि वह इस कॉन्टिनेंट में भारत के संतुलन को अस्थिर करे. भारत ने यूरेशियन कॉन्टिनेंट में रूस से अच्छे संबंध बनाकर पाकिस्तान को कंट्रोल में रखा है. भारत के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है- पाकिस्तान, रूस और चीन का एक साथ आना. रूस और चीन तो पहले से ही एक साथ हैं.''
प्रोफ़ेसर राजन कुमार कहते हैं, "ये बात केवल मैं नहीं कह रहा हूं बल्कि थिंक टैंक कार्नेगी एन्डॉमेंट के सीनियर फेलो एश्ली जे टेलिस भी ऐसा ही मानते हैं. उनका कहना था कि भारत पूरी तरह से अमेरिकी खेमे में नहीं जा सकता है क्योंकि भारत को कॉन्टिनेंटल थ्रेट है. अगर चीन, रूस और पाकिस्तान मिल जाएंगे तो वही ग्रेट गेम शुरू हो जाएगा, जिसकी बात ब्रिटिश इंडिया में हो रही थी. भारत ये स्थिति उत्पन्न नहीं होने देगा.''
जब 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ तो रूस ने बड़ा ही संतुलित पक्ष रखा था. ताशकंद में रूस ने जो समझौता कराया वो भी भारत के ख़िलाफ़ ही गया था. इस समझौते के बाद पाकिस्तान को लगा था कि रूस पूरी तरह से उसके ख़िलाफ़ नहीं है.
1991 में संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान ने 'साउथ एशिया न्यूक्लियर फ़्री ज़ोन' का प्रस्ताव पेश किया था जिसका भारत विरोध करता था.
भारत का तर्क था कि जब तक इसमें चीन नहीं शामिल होगा तब तक इस प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं है. कहा जाता है कि पाकिस्तान का यह प्रस्ताव भारत के परमाणु कार्यक्रम को बाधित करने के लिए था लेकिन सोवियत संघ ने पाकिस्तान के इस प्रस्ताव का समर्थन कर दिया था.

अमेरिका रूस से भारत की दोस्ती को लेकर असहज रहता है. लेकिन भारत अमेरिका की असहजता के सामने झुकने से इनकार करता रहा है.
कई विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका भारत पर रूस से दोस्ती तोड़ने का दबाव डालता है तो इससे पुतिन का ही हाथ मज़बूत होता है.
अमेरिका ने भारत के ख़िलाफ़ टैरिफ और बढ़ाने की धमकी दी थी तो थिंक टैंक अनंता सेंटर की सीईओ इंद्राणी बागची ने लिखा था, ''यह बहुत ख़तरनाक है. पश्चिम का मानना है कि भारत रूस के लिए ख़ास है, इसलिए पुतिन को साधने के लिए भारत को सज़ा दो. पुतिन अपने हितों से डिगते नहीं हैं और उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि भारत को नुक़सान हो रहा है. ऐसे में भारत एक पंचिंग बैग बन जाएगा और उन नतीजों से भी प्रभावित होगा, जिनमें उसका कोई हाथ नहीं होगा.''
इंद्राणी बागची की बात को ही आगे बढ़ाते हुए तन्वी मदानने लिखा था, ''अगर ट्रंप भारत को परेशान करेंगे तो पुतिन को फ़ायदा होगा. भारत और अमेरिका के संबंध ख़राब होंगे तो भारत में रूस से संबंध और मज़बूत करने की मांग होगी. ऐसे में भारत चीन के साथ समझौते के लिए ज़्यादा तैयार दिखेगा.''
तन्वी मदान के मुताबिक़, ''भारत में कुछ लोग सोच रहे हैं कि हम रणनीतिक स्वायत्तता की ओर लौटेंगे या चीन के क़रीब जाएंगे. मुझे नहीं लगता है कि ट्रंप भारत के मामले में इस तरह से सोचते हैं. ट्रंप को अभी चीन से प्रतिस्पर्धा की कोई परवाह नहीं है.''
इन सबके बावजूद प्रोफ़ेसर राजन कुमार को लगता है कि पुतिन पाकिस्तान के मामले में भारत की चिंता को समझते हैं. इस बात के समर्थन में यह कहा जा सकता है कि पुतिन पिछले 25 सालों से रूस की सत्ता के केंद्र में हैं और आज तक पाकिस्तान नहीं गए.
रूस का कोई भी राष्ट्रपति आज तक पाकिस्तान नहीं गया. जब सोवियत संघ का पतन नहीं हुआ था तब भी किसी राष्ट्रपति का पाकिस्तान दौरा नहीं हुआ. सोवियत संघ के पतन के 16 सालों बाद 11 अप्रैल, 2007 को रूस के प्रधानमंत्री मिख़ाइल फ़्रादकोव पाकिस्तान गए थे.
दक्षिण एशिया में भारत एकमात्र देश है, जहाँ पुतिन आते हैं. 17 मार्च 2016 को पाकिस्तान में रूस के तत्कालीन राजदूतअलेक्सई देदोवने इंस्टिट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्ट्डीज इस्लामाबाद में पाकिस्तान-रूस संबंधों पर बोलते हुए कहा था, ''समस्या यह है कि दौरा महज आनुष्ठानिक नहीं होना चाहिए. दौरे की कोई ठोस वजह होनी चाहिए. अगर कोई ठोस वजह रही तो दौरा ज़रूर होगा. इसके लिए तैयारी और समझौतों का होना अनिवार्य है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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