चीन के विदेश मंत्रालय का कहना है कि उसे पाकिस्तानी अधिकारियों ने इस बात का विश्वास दिलाया है कि अमेरिका के साथ उसके कारोबारी मामलों से चीनी हितों को नुक़सान नहीं पहुंचेगा.
इसके अलावा चीन ने पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच सीमा पर हुई हिंसक झड़पों के बाद दोनों देशों को संयम बरतने को कहा है.
13 अक्तूबर को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान से पाकिस्तान के बारे में दो सवाल पूछे गए.
पहला सवाल यह था कि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच सीमा पर झड़पों के बारे में चीन का क्या कहना है.
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ग़ौरतलब है कि शनिवार की रात पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर हिंसक झड़प हुई थी जिनमें पाकिस्तानी सेना के अनुसार उसके सुरक्षा अधिकारियों समेत 23 पाकिस्तानी मारे गए थे.
पाकिस्तानी सेना के जनसंपर्क विभाग 'आईएसपीआर' की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि पुख़्ता इंटेलिजेंस और नुक़सान के अंदाज़ों के मुताबिक़ तालिबान और उससे जुड़े 200 से अधिक चरमपंथियों को मारा गया है जबकि घायलों की संख्या उससे कहीं अधिक है.
वहीं अफ़ग़ान तालिबान के प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहिद ने दावा किया था कि इन कार्रवाइयों के दौरान 58 पाकिस्तानी अधिकारी और तालिबान के नौ अधिकारी मारे गए थे.
चीन के विदेश मंत्रालय से पूछा गया दूसरा सवाल पाकिस्तान और अमेरिका के बीच रेयर अर्थ खनिजों के क्षेत्र में सहयोग से जुड़ा था.
पिछले महीने पाकिस्तान के सेना प्रमुख फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर और प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाक़ात की थी. उस दौरान पाकिस्तान की तरफ़ से अमेरिकी राष्ट्रपति को बहुमूल्य खनिज पेश किए गए थे.
सितंबर में पाकिस्तान और अमेरिका की दो बड़ी कंपनियों के बीच खनिज और लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में सहयोग के समझौते पर दस्तख़त हुए थे. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के कार्यालय से जारी बयान के अनुसार यह कंपनियां शुरुआती तौर पर पाकिस्तान में खनिज के क्षेत्र में लगभग 50 करोड़ डॉलर का पूंजी निवेश करेंगी.
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चीन ने पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच सीमा पर हुई झड़पों के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की है.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "उम्मीद है कि दोनों देश व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए संयम बरतेंगे, एक दूसरे की आशंकाओं को दूर करेंगे, तनाव में इज़ाफ़े से बचेंगे और क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए एक साथ काम करेंगे."
चीन के विदेश मंत्रालय ने दोनों पक्षों से अपील की है कि उनके देश में रह रहे चीनी नागरिकों, चीन के प्रोजेक्ट्स और उसकी संस्थाओं की सुरक्षा के लिए ठोस उपाय किए जाएं.
इसके बाद बीजिंग के सरकारी अख़बार 'ग्लोबल टाइम्स' ने चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान से यह सवाल किया कि क्या पाकिस्तान की तरफ़ से रेयर अर्थ मिनरल्स के अमेरिका को निर्यात के लिए कथित तौर पर चीनी सामान और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया है? इसके अलावा उनसे यह भी पूछा गया कि क्या इसी वजह से चीन ने दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर सख़्ती बढ़ा दी है?
इस पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान और चीन के बीच खनिजों के क्षेत्र में सहयोग के बारे में "पाकिस्तान और चीन ने बातचीत की है."
लिन जियान का कहना था कि पाकिस्तान (के अधिकारियों) ने ज़ोर देकर कहा है कि अमेरिका के साथ कारोबार कभी भी चीनी हितों या चीन के साथ सहयोग को नुक़सान नहीं पहुंचाएगा.
उन्होंने कहा, "पाकिस्तानी नेताओं ने अपने अमेरिकी समकक्षों को जिन खनिजों के नमूने तोहफ़े में पेश किए वह बहुमूल्य पत्थरों के कच्चे (अनप्रोसेस्ड) नमूने हैं जिन्हें स्टाफ़ की तरफ़ से ख़रीदा गया था."
उन्होंने ऐसी सूचनाओं का खंडन किया जिनमें यह दावा किया जा रहा था कि चीन ने पाकिस्तान की वजह से बहुमूल्य खनिजों के निर्यात पर सख़्ती बढ़ाई है.
उनका कहना था कि इन कार्रवाइयों का "पाकिस्तान से कोई संबंध नहीं बल्कि इनका मक़सद अंतरराष्ट्रीय शांति और स्थिरता के साथ-साथ अप्रसार की ज़िम्मेदारियां हैं."
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चीन ने बहुमूल्य खनिजों के निर्यात पर सख़्ती क्यों बढ़ाई? पिछले हफ़्ते चीन ने आधुनिक टेक्नोलॉजी की मैन्युफ़ैक्चरिंग में इस्तेमाल होने वाले दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर सख़्ती बढ़ाई है.
एक अनुमान के अनुसार चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगभग 90 फ़ीसद ऐसे दुर्लभ खनिजों की प्रोसेसिंग करता है जो आधुनिक टेक्नोलॉजी जैसे स्मार्टफ़ोन से लेकर सोलर पैनल समेत हर चीज़ में इस्तेमाल होता है. ध्यान रहे कि इसी महीने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अमेरिकी समकक्ष डोनाल्ड ट्रंप की मुलाक़ात में यह बात भी चर्चा में आएगी.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर 100 फ़ीसद अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने की धमकी दी थी जिसे बीजिंग ने 'डबल स्टैंडर्ड' बताया था.
बीजिंग ने पहले से ही इस टेक्नोलॉजी की प्रोसेसिंग पर कड़ाई कर रखी है. इस मामले में विदेशी सहयोग की भी इजाज़त नहीं. मगर गुरुवार को औपचारिक तौर पर इस बारे में नीति निर्धारित कर दी गई.
विदेशी कंपनियों को अब दुर्लभ खनिजों की छोटी मात्रा के निर्यात के लिए भी चीन की सरकार की इजाज़त की ज़रूरत होगी और उन्हें उसके इस्तेमाल के मक़सद को भी बताना होगा.
चीन के विदेश मंत्रालय ने लिथियम बैटरियों और ग्रेफ़ाइट के कुछ प्रकारों के निर्यात पर भी ऐसी कड़ाई कर रखी है. ऐसे सामान अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन का अहम हिस्सा हैं, मगर अधिकतर चीन में ही बनाए जाते हैं.
बीजिंग का कहना है कि इन सख़्तियों का मक़सद राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करना है. ऐसा लगता है कि इसका असल लक्ष्य अमेरिका समेत रक्षा साज़ो-सामान बनाने वाली विदेशी कंपनियां हैं जो चीन से आने वाले दुर्लभ खनिजों पर निर्भर रहती हैं.
अप्रैल में वॉशिंगटन के ख़िलाफ़ 'ट्रेड वॉर' के दौरान चीन ने एक्सपोर्ट कंट्रोल लिस्ट में कई दुर्लभ खनिजों का इज़ाफ़ा किया था जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी क़िल्लत पैदा हो गई थी.
मगर नए एलान से साफ़ होता है कि रक्षा साज़ो-सामान बनाने वाली कंपनियों और चिप इंडस्ट्री में कुछ कंपनियों को निर्यात के लिए लाइसेंस जारी करने की संभावना कम है.
इस सिलसिले की महत्वपूर्ण बात यह भी है कि चीन की सरकार की इजाज़त मिलने की शर्त पर ही विदेशी कंपनियों को दुर्लभ खनिजों के खनन में इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी दी जाएगी. इसमें वह टेक्नोलॉजी भी शामिल है जिसके ज़रिए दुर्लभ खनिज से चुंबक बनाए जाते हैं.
चीन की कंपनियों पर सरकारी इजाज़त के बिना दुर्लभ खनिजों के लिए विदेशी कंपनियों के साथ काम करने पर पाबंदी है. हाल के एलान से यह पता चला है कि विशेष टेक्नोलॉजी और प्रोसेसिंग पर भी कड़ाई बढ़ाई गई है. उनमें माइनिंग, स्मेल्टिंग एंड सेपरेशन, मैग्नेटिक प्रोडक्ट्स मैन्युफ़ैक्चरिंग और दूसरे संसाधनों से खनिजों की रीसाइकलिंग शामिल है.
इस एलान का अमेरिका पर असर पड़ सकता है जिसके पास दुर्लभ खनिजों के खनन की इंडस्ट्री तो है मगर उसे प्रोसेसिंग के लिए ज़रूरी सामान की क़िल्लत का सामना करना पड़ रहा है.
माना जा रहा है कि चीन की ऐसी कड़ाई उन अमेरिकी कार्रवाइयों की प्रतिक्रिया है जो कई देशों को चिप बनाने वाला सामान चीन को बेचने से रोकता है.
अमेरिका ने ऐसी कार्रवाइयों से चीन को सामरिक उद्देश्यों के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर आधारित शक्तिशाली चिप्स बनाने से रोका है.
अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विशेषज्ञ एलेक्स कैपरी की राय है कि चीन ने नई पाबंदियां ऐसे समय में लगाईं हैं जबकि इसी महीने ट्रंप और शी जिनपिंग की मुलाक़ात होने वाली है.
उनके अनुसार बीजिंग ने अमेरिका में इलेक्ट्रॉनिक्स और हथियारों के उद्योग को निशाना बनाया है.
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दुर्लभ खनिज या रेयर अर्थ्स या रेयर अर्थ मिनरल्स का मतलब ऐसे 12 तत्व हैं जो रासायनिक तौर पर मिलते जुलते हैं. उन्हें आधुनिक टेक्नोलॉजी का सामान बनाने में इस्तेमाल किया जाता है.
प्राकृतिक तौर पर ऐसे खनिज व्यापक पैमाने पर पाए जाते हैं मगर उन्हें इसलिए दुर्लभ समझा जाता है क्योंकि उन्हें विशुद्ध रूप में तलाश करना असामान्य होता है. ऐसे खनिजों का खनन भी ख़तरनाक समझा जाता है.
हालांकि आप शायद इन दुर्लभ खनिजों, जैसे नियोडिमियम, यट्रियम और यूरोपियम के नामों से परिचित न हों मगर आपको ऐसे सामान की जानकारी होगी जिनमें यह इस्तेमाल होते हैं.
उदाहरण के लिए नियोडिमियम का ऐसे शक्तिशाली चुंबक बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो लाउडस्पीकर, कंप्यूटर हार्ड ड्राइव, इलेक्ट्रिक कार की मोटर और हवाई जहाज़ों के इंजन में इस्तेमाल होते हैं. इनसे बने सामान का साइज़ कम होता है और यह काम में बहुत बेहतर होते हैं.
इन दुर्लभ खनिजों की खोज और रिफ़ाइनिंग में चीन का वर्चस्व है. रिफ़ाइनिंग के काम में उन्हें दूसरे खनिजों से अलग किया जाता है.
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) का अंदाज़ा है कि दुनिया में 61 फ़ीसद दुर्लभ खनिज चीन में पाए जाते हैं जबकि यहीं उनकी 92 फ़ीसद प्रोसेसिंग की जाती है.
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