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हल्दी की खेती: किसानों के लिए लाभकारी विकल्प

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हल्दी की खेती

हल्दी की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय बन सकता है। यदि आप आधुनिक कृषि पद्धतियों की ओर अग्रसर हैं, तो आइए हम आपको हल्दी की खेती के लाभ और प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताते हैं।


हल्दी की मांग पूरे वर्ष बनी रहती है, जिससे किसान इस फसल से अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं। यदि सही तरीके से खेती की जाए, तो हल्दी की पैदावार भी बेहतर होती है।


किसानों का मानना है कि एक हेक्टेयर में 200 क्विंटल तक हल्दी की पैदावार हो सकती है, जिससे उन्हें लाखों रुपये की आमदनी हो सकती है। इस लेख में हम हल्दी की खेती का सही समय, विधि, हाइब्रिड किस्में और काली हल्दी की मंडी के बारे में चर्चा करेंगे।


हल्दी की खेती का समय

हल्दी की खेती के लिए किसान साल में दो बार बुवाई कर सकते हैं। आमतौर पर अप्रैल से जुलाई के बीच हल्दी की रोपाई की जाती है। आइए, इस विषय पर विस्तार से जानते हैं:


  • यदि सिंचाई की सुविधा नहीं है, तो जुलाई में बुवाई करें, क्योंकि इस समय बारिश से अतिरिक्त सिंचाई की आवश्यकता नहीं होगी।
  • केरल या पश्चिमी तट के किसान अप्रैल और मई में बुवाई कर सकते हैं, जहां बारिश जल्दी होती है।
  • यदि खेत में जल निकासी अच्छी है, तो अगस्त के मध्य तक बुवाई की जा सकती है।
  • हल्दी की फसल लगभग 6 से 8 महीने में तैयार होती है।

हल्दी की खेती कैसे करें

हल्दी की खेती के लिए निम्नलिखित बिंदुओं का पालन करें:


  • रेतीली या मटियार मिट्टी का चयन करें।
  • मिट्टी का पीएच मान 8 से 9 के बीच होना चाहिए।
  • मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए दो से तीन बार जुताई करें।
  • एक हेक्टेयर में 2000-2500 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • अंकुरण के लिए 30 से 35 ग्राम के गांठ का चयन करें।
  • पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी और कंद के बीच 20 सेमी रखें।
  • रोपाई के बाद हरी शीशम के पत्तों से ढक सकते हैं।
  • तीन गुड़ाई करें: पहली 35-40 दिन में, दूसरी 60-70 दिन में, और तीसरी 90-100 दिन में।
  • उर्वरक का उपयोग करें।

हल्दी की खेती के लिए उर्वरक

हल्दी की खेती में खाद का उपयोग महत्वपूर्ण है। यदि किसान गोबर की खाद का उपयोग करते हैं, तो 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर डालें। इसके अलावा, 100 किलो नत्रजन, और 60-60 किलो क्रमशः पोटाश और फास्फेट का उपयोग करें।


हाइब्रिड हल्दी की खेती

हाइब्रिड हल्दी की कुछ किस्में निम्नलिखित हैं:


  • आईएसआईआर प्रगति: यह किस्म कम समय में अधिक उत्पादन देती है।
  • सोरमा: हल्का नारंगी रंग, 210 दिन में पकती है।
  • लकडोंग: मेघालय में अधिक उगाई जाती है।
  • सीतापुर: 200-210 दिन में पकती है।
  • अन्य किस्में: सुगंधम, सुदर्शन, पीतांबर, आदि।

काली हल्दी की मंडी

काली हल्दी की खेती से किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं। इसकी कीमत पीली हल्दी से अधिक होती है। मध्य प्रदेश के आकाश चौरसिया एक एकड़ में काली हल्दी की खेती करके 10 लाख रुपये तक की कमाई कर लेते हैं। उनकी लागत लगभग 2.5 लाख रुपये होती है। काली हल्दी की मंडी कीमत 500 से 900 रुपये प्रति किलो होती है।


काली हल्दी की खेती

काली हल्दी के लिए मिट्टी का पीएच मान 5 से 7 होना चाहिए। एक एकड़ में 2.5 किलो बीज की आवश्यकता होती है। तीन बार गुड़ाई करने से बेहतर उत्पादन मिलता है। काली हल्दी में कीट रोग नहीं लगते हैं और यह 9 महीने में तैयार हो जाती है।


हल्दी की मल्टीलेयर फार्मिंग

किसान हल्दी की खेती को मल्टीलेयर फार्मिंग के रूप में भी कर सकते हैं। इसमें जमीन के नीचे हल्दी और ऊपर धनिया या पालक जैसी सब्जियों की खेती की जा सकती है। इससे किसान अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं।


हल्दी की खेती में कमाई

हल्दी की खेती से किसान लाखों रुपये का लाभ कमा सकते हैं। उत्तर प्रदेश के रामसनेही पटेल एक एकड़ में 4 से 5 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं। वह अब हल्दी को प्रोसेस करके बेचने की योजना बना रहे हैं।


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