New Delhi, 12 सितंबर . 13 सितंबर 2008 की शाम को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सब कुछ सामान्य लग रहा था. कनॉट प्लेस और गफ्फार मार्केट जैसे व्यस्त इलाकों में लोग रोज की तरह खरीदारी में व्यस्त थे, लेकिन शाम करीब 6 बजे दिल्ली के चार अलग-अलग हिस्सों में एक के बाद एक चार बम धमाकों ने शहर को दहला दिया.
इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, तब तक आतंकी अपने नापाक इरादों को अंजाम दे चुके थे. इन विस्फोटों में 24 लोगों की जान चली गई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे.
2008 के दिल्ली बम विस्फोट एक दर्दनाक आतंकवादी घटना थी, जो भारत की राजधानी को टारगेट करके अंजाम दी गई थी. इन धमाकों से पहले दिल्ली पुलिस के पास एक ईमेल भी भेजा गया था. इंडियन मुजाहिदीन की ओर से पुलिस को भेजे गए ईमेल में चेतावनी दी गई थी कि पांच मिनट में दिल्ली में विस्फोट होंगे, ‘रोक सको तो रोक लो.’
13 सितंबर 2008 की शाम पहला विस्फोट करोल बाग के गफ्फार मार्केट में हुआ. दूसरा धमाका कनॉट प्लेस और तीसरा व चौथा धमाका ग्रेटर कैलाश 1 के एम ब्लॉक मार्केट में हुआ. ये धमाके इतने जोरदार थे कि इसने आसपास मौजूद लोगों को अपनी चपेट में ले लिया. घटनास्थल पर खौफनाक मंजर था और आसपास सिर्फ खून के निशान और बिखरा हुआ सामान पड़ा था.
जांच में ये बात निकलकर सामने आई थी कि आतंकियों ने इन धमाकों को अंजाम देने के लिए अमोनियम नाइट्रेट, स्टील पेलेट्स और टाइमर डिवाइस से बने बम का इस्तेमाल किया था. इन बमों को कचरा डिब्बों या बैगों में छिपाकर रखा गया था.
दहशत का ये सिलसिला यहीं थमने वाला नहीं था, बल्कि दिल्ली को और भी छलनी करने की प्लानिंग थी, लेकिन फिर महकमे की मुस्तैदी ने दहशतगर्दों के मंसूबे पर पानी फेर दिया. चार बम निष्क्रिय किए गए, जिनमें पहला इंडिया गेट पर, दूसरा कनॉट प्लेस में रीगल सिनेमा के बाहर, तीसरा कनॉट प्लेस में और चौथा संसद मार्ग पर.
New Delhi पुलिस के अनुसार, इन धमाकों में 20 लोग मारे गए और करीब 100 लोग घायल हुए थे. बाद में ये संख्या बढ़ी और मृतकों की संख्या 24 तक पहुंच गई थी.
दहशत की उस शाम की टीस आज भी लोगों के दिलों में बरकरार है. दिल्ली चाहकर भी उस जख्म को अपने सीने से मिटा नहीं पाई. उस दौर के बम धमाकों ने ऐसा खौफ पैदा किया कि लोग घरों में कैद हो गए थे.
करीब डेढ़ महीने बाद आई दिवाली पर कई घरों में सन्नाटा और अंधेरा दिखाई दिया, क्योंकि इन धमाकों में कई घरों के चिराग बुझ चुके थे. अब अगर कुछ बचा था तो उनकी यादें थीं.
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एफएम/वीसी
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