अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच चले आ रहे लगभग चार दशक पुराने विवाद को समाप्त कर एक बड़ा कूटनीतिक कदम उठाया है। इस संघर्ष को समाप्त करने के लिए वे बीते कई दिनों से लगातार सक्रिय थे। शुक्रवार को व्हाइट हाउस में ट्रंप ने दोनों देशों के शीर्ष नेताओं — आर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान और अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव — से मुलाकात की। इसी दौरान एक आधिकारिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे 37 वर्षों से जारी तनाव और संघर्ष पर पूर्ण विराम लग गया।
ट्रंप पहले भी यह दावा कर चुके हैं कि वे दुनिया भर में छह प्रमुख युद्धों को रोकने में अहम भूमिका निभा चुके हैं। सत्ता संभालने से पहले उन्होंने रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग को खत्म करने का वादा किया था, हालांकि इस मोर्चे पर उन्हें अभी सफलता नहीं मिली है। लेकिन आर्मेनिया-अजरबैजान का मामला उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि बनकर सामने आया है, जिसमें दशकों से चला आ रहा संघर्ष अब अतीत की बात हो गया है।
शांति और सहयोग का नया अध्याय
व्हाइट हाउस में हुए इस समझौते के तहत न केवल सैन्य टकराव खत्म करने पर सहमति बनी, बल्कि दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग, व्यापारिक संबंध और कूटनीतिक साझेदारी को भी नई मजबूती देने का वादा किया गया है। इस पहल को अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी सकारात्मक दृष्टि से देखा है, क्योंकि यह क्षेत्र लंबे समय से अस्थिरता का केंद्र रहा है।
अलीयेव ने की नोबेल शांति पुरस्कार की मांग
संघर्ष के अंत के बाद अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने ट्रंप की सराहना करते हुए कहा, “यदि राष्ट्रपति ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं दिया जाएगा, तो फिर किसे मिलेगा?” उन्होंने कहा कि 35 साल तक चले इस संघर्ष को खत्म करना एक असाधारण उपलब्धि है, और अब दोनों देश दुश्मनी छोड़कर दोस्ती की राह पर चलेंगे। आर्मेनिया के प्रधानमंत्री ने भी ट्रंप के प्रयासों को ऐतिहासिक करार दिया और उनका आभार व्यक्त किया।
ट्रंप के दावे — 6 अन्य युद्धों में हस्तक्षेप
ट्रंप ने अपने राजनीतिक कार्यकाल में दावा किया है कि उन्होंने या तो सीधे तौर पर या मध्यस्थता के जरिए छह अलग-अलग क्षेत्रों में युद्ध या बड़े विवादों को सुलझाने की कोशिश की है। इनमें भारत-पाकिस्तान, इजराइल-ईरान, थाईलैंड-कंबोडिया, रवांडा-कांगो, सर्बिया-कोसोवो और मिस्र-इथियोपिया के बीच के तनाव शामिल हैं। हालांकि इनमें से कुछ प्रयास अभी भी जारी हैं, लेकिन ट्रंप का मानना है कि उनका कूटनीतिक हस्तक्षेप असरदार रहा है।
आर्मेनिया-अजरबैजान विवाद की पृष्ठभूमि
नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र इस लंबे संघर्ष का केंद्र रहा है। यह इलाका भौगोलिक रूप से अजरबैजान के भीतर स्थित है, लेकिन यहां की आबादी में अर्मेनियाई समुदाय का बहुमत है। धार्मिक और सांस्कृतिक भिन्नताएं, ऐतिहासिक विवाद और बाहरी देशों की दखलअंदाजी ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया। आर्मेनिया मुख्यतः ईसाई राष्ट्र है, जबकि अजरबैजान में तुर्क मूल के मुस्लिम बहुसंख्यक हैं।
इस विवाद में पाकिस्तान, तुर्की और इजराइल जैसे देशों की अप्रत्यक्ष भूमिका भी रही है। दोनों पक्ष एक-दूसरे पर सांस्कृतिक धरोहर, मस्जिदों और चर्चों को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगाते रहे हैं। यही वजह है कि यह संघर्ष 37 वर्षों तक सुलझ नहीं सका था।
अब, ट्रंप की मध्यस्थता के बाद, उम्मीद है कि यह क्षेत्र शांति और स्थिरता की ओर बढ़ेगा, और आने वाली पीढ़ियां इस संघर्ष को सिर्फ इतिहास के पन्नों में पढ़ेंगी।
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