नई दिल्ली: नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (नॉर्थ) को यमुना के बाढ़ वाले इलाके में अवैध खनन के मुद्दे पर अपना जवाब देने के लिए 21 अप्रैल तक का समय दिया है। NGT अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की अगुवाई वाली बेंच ने संबंधित डीएम के अनुरोध पर 17 अप्रैल को यह आदेश पारित किया। डीएम ने ट्रिब्यूनल को भरोसा दिलाया कि वह 21 अप्रैल तक जवाब दाखिल कर देंगे। ट्रिब्यूनल ने एक मामले में खुद संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की है। यमुना के अवैध खनन से जुड़ा है मामलायह मामला नॉर्थ दिल्ली के अलीपुर और गाजियाबाद के पंचायरा के बीच यमुना के बाढ़ वाले इलाके में बढ़ते अवैध खनन से जुड़ा हुआ है। इलाके में रेत माफिया यमुना नदी पर अस्थायी सड़कें बना रहे हैं। इससे उन्हें खनन करने वाली मशीनों को ले जाने और बाढ़ के समय रेत निकालने में मदद मिलती है। ये सड़कें अक्सर लकड़ी के तख्तों और रेत की बोरियों से बनाई जाती हैं। यह तरीका नदी के इकोसिस्टम को नुकसान पहुंचा रहा है। यह सब लंबे समय से चले आ रहे एक चलन का हिस्सा है, जिसमें बनाई गई अवैध सड़कें मॉनसून की बाढ़ में बह जाती हैं और अगले साल फिर से बनाई जाती हैं। रेत माफियाओं ने नदी के किनारों को नुकसान पहुंचायाट्रिब्यूनल ने आरोप पर गौर किया कि रेत माफियाओं ने नदी के किनारों को भी नुकसान पहुंचाया है। मामले में कहा गया कि कोई नियम नदी के तल पर खनन की अनुमति नहीं देते हैं और भारी मशीनों के इस्तेमाल की भी इजाजत नहीं है। बाढ़ के इलाके में 3 मीटर की गहराई से अधिक खुदाई करना गैर-कानूनी है। एनजीटी ने माना कि पट्टेदार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नदी का फ्लो किसी भी तरह से बाधित न हो।इसके अलावा, रेत भरने के इस्तेमाल होने वाले पॉलीप्रोपाइलीन बैग से अस्थायी सड़कों का निर्माण नदी के इकोसिस्टम को प्रभावित कर सकता है। इससे नदी के तल में बदलाव आ सकता है, कटाव बढ़ सकता हैं, नदी रास्ता बदल सकती हैं और बाढ़ की वजह भी बन सकती है।लिहाजा, एनजीटी ने मुद्दे को वॉटर (प्रिवेंशन कंट्रोल ऑफ पल्यूशन) एक्ट, 1974 के उल्लंघन से जुड़ा हुआ मानते हुए उत्तर प्रदेश पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, दिल्ली पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, सेंट्रल पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरनमेंट, फॉरेस्ट एंड क्लाइमेट चेंज, डीएम गाजियाबाद और डीएम, नॉर्थ दिल्ली को नोटिस जारी कर जवाब मांगे थे।
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