Kaal Bhairav Jayanti Upay : भैरव जी की उपासना को नकारात्मक शक्तियों से रक्षा का अत्यंत प्रभावशाली उपाय माना गया है। भैरव जी, भगवान शिव के उग्र रूप हैं, जिनकी आराधना से भय, संकट और विपत्तियाँ दूर होती हैं तथा भूत- प्रेत और ग्रहदोषों के कष्ट समाप्त होते हैं। विशेष रूप से जो व्यक्ति शनि, राहु या केतु से उत्पन्न दोषों से पीड़ित हों, उन्हें भैरव साधना अवश्य करनी चाहिए।
पुराणों के अनुसार, जब भगवान शिव सती का देह लेकर ब्रह्माण्ड में विचरण कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने सती के अंग पृथ्वी पर गिराए, जिनसे 108 शक्ति पीठों की स्थापना हुई। इन पीठों की रक्षा के लिए भगवान शिव ने प्रत्येक स्थान पर एक भैरव को नियुक्त किया। इसी कारण भैरव जी को देवी का द्वारपाल और रक्षक कहा जाता है। उनके प्रमुख स्वरूपों में बटुक भैरव, काल भैरव, चण्ड भैरव और कपाल भैरव सम्मिलित हैं। इनमें से काल भैरव को समय और मृत्यु का स्वामी माना गया है। एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने अंधकासुर से युद्ध किया, तब उनके शरीर से बहते रक्त से अनेक भैरव उत्पन्न हुए। पूर्व दिशा में गिरे रक्त से प्रकट हुए काल भैरव कहलाए। वहीं बटुक भैरव का स्वरूप सौम्य और बालकवत है। जब आपाद नामक राक्षस ने पाँच वर्षीय बालक से मरने का वरदान माँगा, तब देवी महाकाली की कृपा से बटुक भैरव का जन्म हुआ, जिन्होंने उस राक्षस का संहार किया। इसी प्रकार भैरव जी से संबंधित अनेक कथाओं का विवरण विभिन्न ग्रंथों में प्राप्त होता है।
भैरव अष्टमी, जिसे काल भैरव जयंती भी कहा जाता है, मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह वही पावन दिन है जब भगवान शिव ने काल भैरव रूप धारण किया था। इस दिन विशेष रूप से काल भैरव की पूजा, रात्रि-जागरण, दीपदान और कथा-पाठ का आयोजन किया जाता है। भक्त प्रातः स्नान कर, काले तिल, सरसों के तेल का दीपक जलाकर, कुत्तों को भोजन कराते हैं और भैरव जी का ध्यान करते हैं। भैरव अष्टमी के दिन बाबा भैरव की उपासना से जीवन के सभी भय, बाधाएं और ग्रहदोष दूर होते हैं।
पुराणों के अनुसार, जब भगवान शिव सती का देह लेकर ब्रह्माण्ड में विचरण कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने सती के अंग पृथ्वी पर गिराए, जिनसे 108 शक्ति पीठों की स्थापना हुई। इन पीठों की रक्षा के लिए भगवान शिव ने प्रत्येक स्थान पर एक भैरव को नियुक्त किया। इसी कारण भैरव जी को देवी का द्वारपाल और रक्षक कहा जाता है। उनके प्रमुख स्वरूपों में बटुक भैरव, काल भैरव, चण्ड भैरव और कपाल भैरव सम्मिलित हैं। इनमें से काल भैरव को समय और मृत्यु का स्वामी माना गया है। एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने अंधकासुर से युद्ध किया, तब उनके शरीर से बहते रक्त से अनेक भैरव उत्पन्न हुए। पूर्व दिशा में गिरे रक्त से प्रकट हुए काल भैरव कहलाए। वहीं बटुक भैरव का स्वरूप सौम्य और बालकवत है। जब आपाद नामक राक्षस ने पाँच वर्षीय बालक से मरने का वरदान माँगा, तब देवी महाकाली की कृपा से बटुक भैरव का जन्म हुआ, जिन्होंने उस राक्षस का संहार किया। इसी प्रकार भैरव जी से संबंधित अनेक कथाओं का विवरण विभिन्न ग्रंथों में प्राप्त होता है।
भैरव अष्टमी, जिसे काल भैरव जयंती भी कहा जाता है, मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह वही पावन दिन है जब भगवान शिव ने काल भैरव रूप धारण किया था। इस दिन विशेष रूप से काल भैरव की पूजा, रात्रि-जागरण, दीपदान और कथा-पाठ का आयोजन किया जाता है। भक्त प्रातः स्नान कर, काले तिल, सरसों के तेल का दीपक जलाकर, कुत्तों को भोजन कराते हैं और भैरव जी का ध्यान करते हैं। भैरव अष्टमी के दिन बाबा भैरव की उपासना से जीवन के सभी भय, बाधाएं और ग्रहदोष दूर होते हैं।
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