नई दिल्ली: नेपाल में सोशल मीडिया पर बैन लगाने की केपी शर्मा ओली सरकार के फैसले की आलोचना हो सकती है। मौजूदा दौर में इस तरह के फैसले के औचित्य पर बहस जरूरी भी है। लेकिन, सोमवार (8 सितंबर, 2025) को नेपाल की राजधानी काठमांडू की सड़कों से लेकर संसद तक जो माहौल बना, वह बहुत बड़े खतरे की घंटी है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 20 युवाओं की मौत हुई और 300 से ज्यादा जख्मी हैं। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के विरोध में प्रदर्शन करने वालों में बड़ी तादाद में स्कूली बच्चे भी शामिल थे, जो स्कूलों से छुट्टी मिलते ही सीधे विरोध-प्रदर्शन में शामिल हो गए। मुद्दा क्या था? सोशल मीडिया पर बैन! आखिर बच्चों, किशोरों और युवाओं को नेपाल सरकार के इस फैसले ने इतना परेशान क्यों कर दिया? इनका धैर्य इतनी जल्दी क्यों खो गया? क्या यह भारत के लिए खतरे की घंटी नहीं है?
Gen Z की 27.2 प्रतिशत आबादी
भारत की सच्चाई ये है कि करीब 140 करोड़ की आबादी में 27.2 प्रतिशत 15 साल से 29 साल के युवा हैं। इनमें से अधिकांश की स्मार्ट फोन तक पहुंच है और उसके माध्यम से बेलगाम सोशल मीडिया तक। नेपाल के किशोर-युवा आंदोलन की जिस जेनरेशन जी या जेन जी ( Gen Z) ने अगुवाई की है, वह उन्हें कहा जाता है, जो मोटे तौर पर 1997 के बाद और 2012 से पहले पैदा हुए हैं। कुछ लोग इसमें 2010 से पहले पैदा हुए युवाओं को ही रखते हैं।
सोशल मीडिया पर लाइव खुदकुशी
भारत में कई ऐसे चर्चित मामलों को उदाहरण के रूप में बताया जा सकता है, जिसमें युवाओं-किशोरों की सोशल मीडिया की वजह से ही खौफनाक मौत हो चुकी है। इसी साल जनवरी की घटना है। छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले में 19 साल की एक युवती अंकुर नाथ ने इंस्टाग्राम पर लाइव रहते हुए खुदकुशी कर ली, क्योंकि 'प्यार में उसका दिल तोड़ दिया' गया था। इस हृदयविदारक घटना को उसके 21 फॉलोअर्स ने लाइव देखा। बाद में उसके माता-पिता ने पुलिस को बताया कि वह हमेशा रील और वीडियो बनाने में जुटी रहती थी, क्योंकि इससे उसे बहुत ज्यादा अटेंशन मिलता था।
फॉलोअर्स घटने पर कर ली आत्महत्या
इसी साल अप्रैल में मिशा अग्रवाल नाम की एक सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर ने अपने 25वें जन्मदिन से दो दिन पहले इस वजह से खुदकुशी कर ली, क्योंकि इंस्टाग्राम पर उसके फॉलोअर्स घट गए थे। जब उसकी मौत हुई तब इंस्टाग्राम पर उसके 3.5 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स थे। उसे 1 मिलियन फॉलोअर्स का अपना सपना टूटता दिखा तो उसने जान देने का फैसला कर लिया। इसी तरह उज्जैन के 16 साल के प्रांशु नाम के एक किशोर आर्टिस्ट ने नवंबर 2023 में इसलिए मौत को गले लगा लिया, क्योंकि वह सोशल मीडिया पर अपने लिए अभद्र टिप्पणियों को नहीं झेल पाया।
बच्चा बच गया,लेकिन मां ने दे दी जान
अप्रैल 2024 की एक घटना है। चेन्नई में 8 महीने का एक मासूम बहुमंजिला इमारत परिसर में एक टिन शेड पर गिर गया। उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। भारतीय नहीं, विदेशियों ने भी इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर उस मासूम की मां को निशाना बनाना शुरू किया। भद्दी-भद्दी टिप्पणियां की गईं। कुछ दिनों बाद महिला परेशान हालत में कोयंबटूर अपने माता-पिता के घर चली गई। बच्चा तो बच गया, लेकिन वह महिला इतनी आहत हुई कि आत्महत्या कर ली। पुलिस के मुताबिक सोशल मीडिया की वजह से वह बहुत ज्यादा डिप्रेशन में थी। ये चंद घटनाएं मात्र एक झलक भर हैं कि सोशल मीडिया का किस तरह का नकारात्मक असर पड़ सकता है।
क्या हम बारूद की ढेर पर बैठे हैं?
सोशल मीडिया पर रोजाना ऐसे वीडियो देखने को मिलते हैं, जिसमें किशोर और युवा जान जोखिम में डालकर रील बनाते हैं। कोई ट्रेन की पटरियों के बीच में लेटकर ट्रेन गुजरने का वीडियो बनाता है तो कोई हाईवे पर खतरनाक स्टंट करता है। कई बार यह दूसरों की जान के लिए भी आफत बन जाते हैं। टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के मुताबिक (TRAI) भारत में इंटरनेट कनेक्शन के साथ स्मार्ट फोन की संख्या 100 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। शहरी इलाकों में स्मार्ट फोन का घनत्व आबादी के मुकाबले 128 फीसदी है तो ग्रामीण भारत में भी फरवरी 2024 तक यह 58 प्रतिशत तक पहुंच चुका था। यह जागने का समय है। क्या सोशल मीडिया की वजह से हम बारूद की ढेर पर बैठे हुए हैं?
सोशल मीडिया का मनोवैज्ञानिक असर
एक्सपर्ट की मानें तो खासकर कम उम्र की लड़कियां, बहुत ज्यादा सोशल मीडिया के इस्तेमाल की वजह से अधिक मनोवैज्ञानिक प्रभावों से गुजर रही हैं। जो चीज एक मनोरंजन और दोस्तों-रिश्तेदारों से जुड़ने के एक आसान माध्यम के रूप में शुरू होती है, वह धीरे-धरे लत, डिप्रेशन, आत्मघाती विचारों और गंदे बर्ताव में तब्दील हो जाती है।
67.5 प्रतिशत लोग सोशल मीडिया पर
तथ्य यह है कि भारत में 18 साल से ज्यादा उम्र के लोग सोशल मीडिया के सबसे ज्यादा ऐक्टिव यूजर्स हैं। यह आबादी लगभग 39.8 करोड़ है। अगर देश की आबादी के हिसाब से देखें तो यह जनसंख्या का 40.2 प्रतिशत हैं। भारत की कुल जनसंख्या में करीब 31.8 प्रतिशत लोग फेसबुक पर ऐक्टिव हैं और 67.5 प्रतिशत कोई न कोई एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं। रिसर्च से यह भी पता चलता है कि सोशल मीडिया पर एक यूजर की ओर से बिताया गया, वैश्विक औसत समय प्रतिदिन 145 मिनट का है।
Gen Z की 27.2 प्रतिशत आबादी
भारत की सच्चाई ये है कि करीब 140 करोड़ की आबादी में 27.2 प्रतिशत 15 साल से 29 साल के युवा हैं। इनमें से अधिकांश की स्मार्ट फोन तक पहुंच है और उसके माध्यम से बेलगाम सोशल मीडिया तक। नेपाल के किशोर-युवा आंदोलन की जिस जेनरेशन जी या जेन जी ( Gen Z) ने अगुवाई की है, वह उन्हें कहा जाता है, जो मोटे तौर पर 1997 के बाद और 2012 से पहले पैदा हुए हैं। कुछ लोग इसमें 2010 से पहले पैदा हुए युवाओं को ही रखते हैं।
सोशल मीडिया पर लाइव खुदकुशी
भारत में कई ऐसे चर्चित मामलों को उदाहरण के रूप में बताया जा सकता है, जिसमें युवाओं-किशोरों की सोशल मीडिया की वजह से ही खौफनाक मौत हो चुकी है। इसी साल जनवरी की घटना है। छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले में 19 साल की एक युवती अंकुर नाथ ने इंस्टाग्राम पर लाइव रहते हुए खुदकुशी कर ली, क्योंकि 'प्यार में उसका दिल तोड़ दिया' गया था। इस हृदयविदारक घटना को उसके 21 फॉलोअर्स ने लाइव देखा। बाद में उसके माता-पिता ने पुलिस को बताया कि वह हमेशा रील और वीडियो बनाने में जुटी रहती थी, क्योंकि इससे उसे बहुत ज्यादा अटेंशन मिलता था।
फॉलोअर्स घटने पर कर ली आत्महत्या
इसी साल अप्रैल में मिशा अग्रवाल नाम की एक सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर ने अपने 25वें जन्मदिन से दो दिन पहले इस वजह से खुदकुशी कर ली, क्योंकि इंस्टाग्राम पर उसके फॉलोअर्स घट गए थे। जब उसकी मौत हुई तब इंस्टाग्राम पर उसके 3.5 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स थे। उसे 1 मिलियन फॉलोअर्स का अपना सपना टूटता दिखा तो उसने जान देने का फैसला कर लिया। इसी तरह उज्जैन के 16 साल के प्रांशु नाम के एक किशोर आर्टिस्ट ने नवंबर 2023 में इसलिए मौत को गले लगा लिया, क्योंकि वह सोशल मीडिया पर अपने लिए अभद्र टिप्पणियों को नहीं झेल पाया।
बच्चा बच गया,लेकिन मां ने दे दी जान
अप्रैल 2024 की एक घटना है। चेन्नई में 8 महीने का एक मासूम बहुमंजिला इमारत परिसर में एक टिन शेड पर गिर गया। उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। भारतीय नहीं, विदेशियों ने भी इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर उस मासूम की मां को निशाना बनाना शुरू किया। भद्दी-भद्दी टिप्पणियां की गईं। कुछ दिनों बाद महिला परेशान हालत में कोयंबटूर अपने माता-पिता के घर चली गई। बच्चा तो बच गया, लेकिन वह महिला इतनी आहत हुई कि आत्महत्या कर ली। पुलिस के मुताबिक सोशल मीडिया की वजह से वह बहुत ज्यादा डिप्रेशन में थी। ये चंद घटनाएं मात्र एक झलक भर हैं कि सोशल मीडिया का किस तरह का नकारात्मक असर पड़ सकता है।
क्या हम बारूद की ढेर पर बैठे हैं?
सोशल मीडिया पर रोजाना ऐसे वीडियो देखने को मिलते हैं, जिसमें किशोर और युवा जान जोखिम में डालकर रील बनाते हैं। कोई ट्रेन की पटरियों के बीच में लेटकर ट्रेन गुजरने का वीडियो बनाता है तो कोई हाईवे पर खतरनाक स्टंट करता है। कई बार यह दूसरों की जान के लिए भी आफत बन जाते हैं। टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के मुताबिक (TRAI) भारत में इंटरनेट कनेक्शन के साथ स्मार्ट फोन की संख्या 100 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। शहरी इलाकों में स्मार्ट फोन का घनत्व आबादी के मुकाबले 128 फीसदी है तो ग्रामीण भारत में भी फरवरी 2024 तक यह 58 प्रतिशत तक पहुंच चुका था। यह जागने का समय है। क्या सोशल मीडिया की वजह से हम बारूद की ढेर पर बैठे हुए हैं?
सोशल मीडिया का मनोवैज्ञानिक असर
एक्सपर्ट की मानें तो खासकर कम उम्र की लड़कियां, बहुत ज्यादा सोशल मीडिया के इस्तेमाल की वजह से अधिक मनोवैज्ञानिक प्रभावों से गुजर रही हैं। जो चीज एक मनोरंजन और दोस्तों-रिश्तेदारों से जुड़ने के एक आसान माध्यम के रूप में शुरू होती है, वह धीरे-धरे लत, डिप्रेशन, आत्मघाती विचारों और गंदे बर्ताव में तब्दील हो जाती है।
67.5 प्रतिशत लोग सोशल मीडिया पर
तथ्य यह है कि भारत में 18 साल से ज्यादा उम्र के लोग सोशल मीडिया के सबसे ज्यादा ऐक्टिव यूजर्स हैं। यह आबादी लगभग 39.8 करोड़ है। अगर देश की आबादी के हिसाब से देखें तो यह जनसंख्या का 40.2 प्रतिशत हैं। भारत की कुल जनसंख्या में करीब 31.8 प्रतिशत लोग फेसबुक पर ऐक्टिव हैं और 67.5 प्रतिशत कोई न कोई एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं। रिसर्च से यह भी पता चलता है कि सोशल मीडिया पर एक यूजर की ओर से बिताया गया, वैश्विक औसत समय प्रतिदिन 145 मिनट का है।
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