यज्ञ, विवाह आदि सभी धार्मिक कार्यों में धर्मपत्नी को पति के दाएं हाथ की ओर ही बैठना चाहिए, क्योंकि सभी धर्मैशास्त्रकार ऐसी ही व्यवस्था देते हैं, इसका प्रमाण शास्त्रों में इस प्रकार मिलता है। इस विषय के अनेक प्रमाण धर्मशास्त्रों में वर्णित हैं। धर्मपत्नी किन-किन कार्यों में पति के दाएं हाथ बैठे और किन कार्यों में बाएं हाथ रहे, इसका सुस्पष्ट उल्लेख शास्त्रों में हैं, इस विषय में निम्नलिखित प्रमाण माननीय हैं। सभी धार्मिक और शुभ कार्यों में पत्नी का पति के दाहिनी ओर बैठना शुभ माना जाता है। यह पारंपरिक भारतीय रीति-रिवाजों को दर्शाता है जहाँ पत्नी को दाहिनी ओर बैठना शुभ माना जाता है। संस्कार विधि के अनुसार प्रमाण इस प्रकार है,
यज्ञे होमे व्रते दाने स्नान पूजादि कर्मणि। देवयात्रा-विवाहेषु पत्नी दक्षिणतः शुभा।
अत्रिस्मृति के अनुसार, जीवद्-भर्तरि वामांगी मृते वापि सुदक्षिणा। श्राद्धे यज्ञे विवाहे च पत्नी दक्षिणतः सदा।।
संस्कार गणपति कर्मठ गुरु के अनुसार, वामे सिन्दूरदाने च वामे चौव द्विरागमे। वामे सदैव शय्यायां भवेज्जाया प्रियार्थनी । सर्वेषु शुभकार्येषु पत्नी दक्षिणतः सदा।।
लघु आश्वलायन के अनुसार, दम्पती तु व्रजेयातां होमार्थं चौव वेदिकाम्। वरस्य दक्षिणे भागे तां वधूमुपवेशयेत्।।
गोभिल गृह्यसूत्र के अनुसार, पूर्वे कटान्ते दक्षिणतः पाणिग्राहस्योपविशति। दक्षिणेन पाणिना दक्षिणमंसमन्वारब्ययाः घडाज्याहुर्तीर्जुहोति।
इन प्रमाणों के अनुसार धर्मपत्नी को निम्नलिखित कार्यों में पति के दाएं बिठाना चाहिए
यज्ञे होमे व्रते दाने स्नान पूजादि कर्मणि। देवयात्रा-विवाहेषु पत्नी दक्षिणतः शुभा।
अत्रिस्मृति के अनुसार, जीवद्-भर्तरि वामांगी मृते वापि सुदक्षिणा। श्राद्धे यज्ञे विवाहे च पत्नी दक्षिणतः सदा।।
संस्कार गणपति कर्मठ गुरु के अनुसार, वामे सिन्दूरदाने च वामे चौव द्विरागमे। वामे सदैव शय्यायां भवेज्जाया प्रियार्थनी । सर्वेषु शुभकार्येषु पत्नी दक्षिणतः सदा।।
लघु आश्वलायन के अनुसार, दम्पती तु व्रजेयातां होमार्थं चौव वेदिकाम्। वरस्य दक्षिणे भागे तां वधूमुपवेशयेत्।।
गोभिल गृह्यसूत्र के अनुसार, पूर्वे कटान्ते दक्षिणतः पाणिग्राहस्योपविशति। दक्षिणेन पाणिना दक्षिणमंसमन्वारब्ययाः घडाज्याहुर्तीर्जुहोति।
इन प्रमाणों के अनुसार धर्मपत्नी को निम्नलिखित कार्यों में पति के दाएं बिठाना चाहिए
- श्रीमद् भागवत् कथा, गीतायज्ञ एवं वेद यज्ञ आदि कार्यों में पत्नी को दाऐं बैठना चाहिए।
- सिन्दूर दान को छोड़कर विवाहकालीन सभी पूजा आदि कार्यों में धर्मपत्नी को दाएं बैठना चाहिए।
- श्राद्ध करते समय, व्रत आदि में उद्यापन में, चतुर्थी कर्म में और सभी पूजा आदि कार्यों में धर्मपत्नी को दाएं बैठना चाहिए।
- नामकरण आदि संस्कारों में तथा कन्यादान के समय धर्मपत्नी को दाएं बैठना चाहिए।
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