चंडीगढ़: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब पुलिस को कड़ी फटकार लगाते हुए 18 साल से लंबित एक एफआईआर को रद्द न करने पर राज्य पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। अदालत ने कहा कि पुलिस की यह लापरवाही जनता के विश्वास के साथ खिलवाड़ है और ऐसे मामलों में जिम्मेदार अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई जरूरी है। अदालत ने आदेश दिया कि जुर्माने की राशि में से 25,000 रुपये याचिकाकर्ता को दिए जाएं, जबकि शेष 75,000 रुपये पंजाब स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी के डिज़ास्टर रिलीफ फंड में जमा किए जाएं।
डीजीपी से कही ये बात
हाईकोर्ट ने इसके साथ ही पंजाब के डीजीपी को 90 दिनों के भीतर रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए गए हैं। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर आदेश का पालन नहीं हुआ तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। न्यायमूर्ति सुमीत गोयल ने इस मामले में कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य की संप्रभु शक्ति से अभियोजन चलाना एक गंभीर सार्वजनिक विश्वास है, जिसे ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ निभाया जाना चाहिए। अदालत ने चेतावनी दी कि इसे निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल नहीं की जा सकतीं।
क्या है मामला
हाईकोर्ट ने पंजाब पुलिस के रवैये की निंदा करते हुए कहा कि यह मामला लापरवाह और उदासीन कार्यशैली का उदाहरण है। न्यायमूर्ति गोयल ने कहा कि ऐसी सुस्ती और गैर-जिम्मेदाराना रवैये को रोकने के लिए अदालतों को संस्थागत स्तर पर सख्त कदम उठाने होंगे और दोषियों पर आर्थिक दंड ही इसका एक प्रभावी तरीका है। बता दें कि यह मामला जालंधर के डिवीजन नंबर-6 थाने में 9 अगस्त 2007 को दर्ज एफआईआर से जुड़ा है। इस एफआईआर में आईपीसी की धारा 323 (मारपीट), 341 (गलत तरीके से रोकना), 506 (धमकी देना) और 34 (साझा इरादा) के तहत केस दर्ज किया गया था। यह याचिका किमती लाल भगत द्वारा दायर की गई थी, जो इस लंबे समय से चली आ रही देरी से राहत चाहते थे।
डीजीपी से कही ये बात
हाईकोर्ट ने इसके साथ ही पंजाब के डीजीपी को 90 दिनों के भीतर रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए गए हैं। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर आदेश का पालन नहीं हुआ तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। न्यायमूर्ति सुमीत गोयल ने इस मामले में कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य की संप्रभु शक्ति से अभियोजन चलाना एक गंभीर सार्वजनिक विश्वास है, जिसे ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ निभाया जाना चाहिए। अदालत ने चेतावनी दी कि इसे निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल नहीं की जा सकतीं।
क्या है मामला
हाईकोर्ट ने पंजाब पुलिस के रवैये की निंदा करते हुए कहा कि यह मामला लापरवाह और उदासीन कार्यशैली का उदाहरण है। न्यायमूर्ति गोयल ने कहा कि ऐसी सुस्ती और गैर-जिम्मेदाराना रवैये को रोकने के लिए अदालतों को संस्थागत स्तर पर सख्त कदम उठाने होंगे और दोषियों पर आर्थिक दंड ही इसका एक प्रभावी तरीका है। बता दें कि यह मामला जालंधर के डिवीजन नंबर-6 थाने में 9 अगस्त 2007 को दर्ज एफआईआर से जुड़ा है। इस एफआईआर में आईपीसी की धारा 323 (मारपीट), 341 (गलत तरीके से रोकना), 506 (धमकी देना) और 34 (साझा इरादा) के तहत केस दर्ज किया गया था। यह याचिका किमती लाल भगत द्वारा दायर की गई थी, जो इस लंबे समय से चली आ रही देरी से राहत चाहते थे।
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