नई दिल्ली: अमेरिका से तनाव के बीच भारतीय बाजारों को विदेशी निवेशकों के साथ का इंतजार रहा है। लेकिन, इन्होंने अब तक मुंह मोड़कर रखा हुआ है। यह तब है जब भारत दुनिया की सबसे तेजी से दौड़ती अर्थव्यवस्था है। हाल में हुए जीएसटी सुधारों से इसमें और तेजी आने की संभावना है। सितंबर में अब तक विदेशी निवेशकों (एफआईआई) ने भारतीय शेयर बाजार में 10,782 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं। यह और बात है कि इस दौरान एनएसई निफ्टी लगातार आठ दिनों से मजबूत बना हुआ है। कुछ जानकारों का मानना है कि भारत में शेयरों के ऊंचे दाम और सेबी की ओर से नियमों में ढील देने से बाजार में बदलाव आ सकता है। साथ ही, अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले का भी इस पर असर पड़ेगा।
भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। लेकिन, विदेशी निवेश उम्मीद के मुताबिक नहीं आ रहा है। 2021 से 2024 के बीच भारत की जीडीपी में औसतन 8.2% की बढ़ोतरी हुई है। यह वियतनाम, चीन और कई अन्य देशों से ज्यादा है। 2025 में भी यह रफ्तार बनी हुई है। हालांकि, एफपीआई भारत में ज्यादा निवेश नहीं कर रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है, इसके कई कारण हैं। दरअसल, पहले किए गए निवेश से निवेशक अब मुनाफा कमा रहे हैं, व्यापार घाटा बढ़ रहा है, और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ की चिंताएं भी हैं। सरकार अब सुधार करने की कोशिश कर रही है ताकि विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सके।
दूसरे देशों के मुकाबले भारत की रफ्तार
भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, 2021 से 2024 के दौरान भारत की जीडीपी में हर साल औसतन 8.2% की बढ़ोतरी हुई। इसी अवधि में वियतनाम में 5.8%, चीन में 5.5%, मलेशिया में 5.2%, इंडोनेशिया में 4.8%, ब्रिटेन में 3.7%, अमेरिका, ब्राजील और मैक्सिको में 3.6%, अर्जेंटीना में 3.1%, यूरोपीय संघ (ईयू) में 2.8%, थाईलैंड में 2.2% और जापान में 1.3% की बढ़ोतरी हुई। नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था ने जनवरी-मार्च और अप्रैल-जून 2025 में 7.4% और 7.8% की जीडीपी ग्रोथ दर्ज की।
इतनी अच्छी विकास दर के बावजूद देश को विदेशी निवेश उतना नहीं मिल रहा है जितना मिलना चाहिए। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को ही लें। पिछले पांच वित्तीय वर्षों (अप्रैल-मार्च) में सिर्फ एक वर्ष (2023-24) में भारतीय शेयर बाजार में 25.3 अरब डॉलर का शुद्ध एफपीआई निवेश आया। बाकी सभी वर्षों में एफपीआई ने निवेश से ज्यादा पैसा निकाला। 2021-22 में 18.5 अरब डॉलर, 2022-23 में 5.1 अरब डॉलर, 2024-25 में 14.6 अरब डॉलर और 5 सितंबर 2025 तक 2025-26 में 2.9 अरब डॉलर की शुद्ध निकासी हुई।
पूरी तरह उलट विदेशी निवेशकों का रुख
आमतौर पर जब किसी देश की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही होती है तो विदेशी निवेशक भी उस विकास का लाभ उठाने के लिए निवेश करते हैं। भारत जैसे देशों को विदेशी पूंजी की जरूरत भी होती है। लेकिन, आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 में भारत में शुद्ध पूंजी प्रवाह सिर्फ 18.3 अरब डॉलर रहा। यह 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के वर्ष में 7.8 अरब डॉलर के बाद सबसे कम है। जबकि 2007-08 में यह 107.9 अरब डॉलर था, जो अब तक का सबसे ज्यादा है।
विदेशी निवेशकों ने सितंबर में भारतीय शेयर बाजार में अपनी हिस्सेदारी कम कर दी है। उन्होंने 10,782 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं। लेकिन, निफ्टी पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ है। यह लगातार आठ दिनों से अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।
जियोजित इन्वेस्टमेंट के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट वीके विजयकुमार का कहना है कि भारत में शेयरों के दाम ऊंचे हैं। लिहाजा, एफआईआई यहां से पैसा निकालकर चीन, हांगकांग और दक्षिण कोरिया जैसे सस्ते बाजारों में निवेश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह रणनीति इस साल कारगर रही है। इन सस्ते बाजारों ने 2025 में भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है।
वीके विजयकुमार को लगता है कि एफआईआई की बिकवाली कम हो सकती है। वे भारतीय बाजार में फिर से खरीदारी कर सकते हैं। भारत की जीडीपी विकास दर पहली तिमाही में बहुत अच्छी रही है। बजट में टैक्स कटौती, एमपीसी की ओर से ब्याज दरों में कटौती और जीएसटी को आसान बनाने जैसे सुधारों से विकास को बढ़ावा मिल सकता है। उनका मानना है कि वित्त वर्ष 2025-26 में कमाई में 8-10% की मामूली बढ़ोतरी हो सकती है। लेकिन, वित्त वर्ष 2026-27 में 15% से ज्यादा की बढ़ोतरी की संभावना है। बाजार जल्द ही इस पर ध्यान देगा। इससे निफ्टी इस साल एक नया रिकॉर्ड बना सकता है। ऐसे में एफआईआई भारत में फिर से खरीदारी कर सकते हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। लेकिन, विदेशी निवेश उम्मीद के मुताबिक नहीं आ रहा है। 2021 से 2024 के बीच भारत की जीडीपी में औसतन 8.2% की बढ़ोतरी हुई है। यह वियतनाम, चीन और कई अन्य देशों से ज्यादा है। 2025 में भी यह रफ्तार बनी हुई है। हालांकि, एफपीआई भारत में ज्यादा निवेश नहीं कर रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है, इसके कई कारण हैं। दरअसल, पहले किए गए निवेश से निवेशक अब मुनाफा कमा रहे हैं, व्यापार घाटा बढ़ रहा है, और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ की चिंताएं भी हैं। सरकार अब सुधार करने की कोशिश कर रही है ताकि विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सके।
दूसरे देशों के मुकाबले भारत की रफ्तार
भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, 2021 से 2024 के दौरान भारत की जीडीपी में हर साल औसतन 8.2% की बढ़ोतरी हुई। इसी अवधि में वियतनाम में 5.8%, चीन में 5.5%, मलेशिया में 5.2%, इंडोनेशिया में 4.8%, ब्रिटेन में 3.7%, अमेरिका, ब्राजील और मैक्सिको में 3.6%, अर्जेंटीना में 3.1%, यूरोपीय संघ (ईयू) में 2.8%, थाईलैंड में 2.2% और जापान में 1.3% की बढ़ोतरी हुई। नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था ने जनवरी-मार्च और अप्रैल-जून 2025 में 7.4% और 7.8% की जीडीपी ग्रोथ दर्ज की।
इतनी अच्छी विकास दर के बावजूद देश को विदेशी निवेश उतना नहीं मिल रहा है जितना मिलना चाहिए। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को ही लें। पिछले पांच वित्तीय वर्षों (अप्रैल-मार्च) में सिर्फ एक वर्ष (2023-24) में भारतीय शेयर बाजार में 25.3 अरब डॉलर का शुद्ध एफपीआई निवेश आया। बाकी सभी वर्षों में एफपीआई ने निवेश से ज्यादा पैसा निकाला। 2021-22 में 18.5 अरब डॉलर, 2022-23 में 5.1 अरब डॉलर, 2024-25 में 14.6 अरब डॉलर और 5 सितंबर 2025 तक 2025-26 में 2.9 अरब डॉलर की शुद्ध निकासी हुई।
पूरी तरह उलट विदेशी निवेशकों का रुख
आमतौर पर जब किसी देश की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही होती है तो विदेशी निवेशक भी उस विकास का लाभ उठाने के लिए निवेश करते हैं। भारत जैसे देशों को विदेशी पूंजी की जरूरत भी होती है। लेकिन, आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 में भारत में शुद्ध पूंजी प्रवाह सिर्फ 18.3 अरब डॉलर रहा। यह 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के वर्ष में 7.8 अरब डॉलर के बाद सबसे कम है। जबकि 2007-08 में यह 107.9 अरब डॉलर था, जो अब तक का सबसे ज्यादा है।
विदेशी निवेशकों ने सितंबर में भारतीय शेयर बाजार में अपनी हिस्सेदारी कम कर दी है। उन्होंने 10,782 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं। लेकिन, निफ्टी पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ है। यह लगातार आठ दिनों से अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।
जियोजित इन्वेस्टमेंट के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट वीके विजयकुमार का कहना है कि भारत में शेयरों के दाम ऊंचे हैं। लिहाजा, एफआईआई यहां से पैसा निकालकर चीन, हांगकांग और दक्षिण कोरिया जैसे सस्ते बाजारों में निवेश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह रणनीति इस साल कारगर रही है। इन सस्ते बाजारों ने 2025 में भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है।
वीके विजयकुमार को लगता है कि एफआईआई की बिकवाली कम हो सकती है। वे भारतीय बाजार में फिर से खरीदारी कर सकते हैं। भारत की जीडीपी विकास दर पहली तिमाही में बहुत अच्छी रही है। बजट में टैक्स कटौती, एमपीसी की ओर से ब्याज दरों में कटौती और जीएसटी को आसान बनाने जैसे सुधारों से विकास को बढ़ावा मिल सकता है। उनका मानना है कि वित्त वर्ष 2025-26 में कमाई में 8-10% की मामूली बढ़ोतरी हो सकती है। लेकिन, वित्त वर्ष 2026-27 में 15% से ज्यादा की बढ़ोतरी की संभावना है। बाजार जल्द ही इस पर ध्यान देगा। इससे निफ्टी इस साल एक नया रिकॉर्ड बना सकता है। ऐसे में एफआईआई भारत में फिर से खरीदारी कर सकते हैं।
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