इस्लामाबाद: सऊदी अरब से रक्षा समझौता करने के बाद पाकिस्तान के नेता ढोल पीट रहे थे। वो इसे भारत के खिलाफ बहुत बड़ा रक्षा समझौता बता रहे थे। शहबाज शरीफ से लेकर पाकिस्तान के ज्यादातर नेता, पाकिस्तान सऊदी डिफेंस समझौते को एक उपलब्धि बता रहे थे। लेकिन सिर्फ 23 दिनों में ये ढोल फट गया। तालिबान ने पाकिस्तान की सेना को सरहद पर घसीट घसीटकर मारा तो सऊदी अरब ने चुप्पी साध ली। सऊदी अरब की तरफ से दोनों पक्षों को सिर्फ संयम बरतने की सलाह दी गई, जिसके बाद अब बड़बोले शहबाज शरीफ और उनके मंत्रियों को समझ नहीं आ रहा कि वो डिफेंस पैक्ट का बचाव कैसे करें।
पाकिस्तान-सऊदी सामरिक पारस्परिक रक्षा समझौते (SMDA) को लेकर अब कई लोग दावा कर रहे हैं कि इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया था, असल में व्यावहारिक रूप से इसका कोई अस्तित्व ही नहीं था। जबकि, पाकिस्तान ने दावा किया था कि इस रक्षा सौदे के मुताबिक, सऊदी पर हमला पाकिस्तान पर और पाकिस्तान पर हमला सऊदी पर हमला माना जाएगा। लेकिन, सऊदी ने सिर्फ एक सामान्य अपील जारी कर शहबाज शरीफ के डिफेंस पैक्ट की पोल खोल दी।
सऊदी-पाकिस्तान समझौता किसी काम का नहीं!
हैरानी की बात देखिए कि तालिबान और पाकिस्तान के बीच सीजफायर, सऊदी अरब ने नहीं, बल्कि कतर ने, तुर्की के सहयोग से करवाया। इसके अलावा महत्वपूर्ण बात यह है कि इस सीजफायर समझौते में भी तालिबान ने बाजी मार ली। तालिबान के अधिकारी, कतर के आधिकारिक युद्धविराम बयानों से "डूरंड रेखा" और "सीमा" शब्द को हटवाने में कामयाब रहे, जबकि पाकिस्तान ने युद्धविराम समझौते के बाद कहा था कि समझौते में डूरंड लाइन विवाद भी शामिल है। इसका मतलब यह हुआ कि अफगान तालिबान ने फिर साबित कर दिया कि वे पाकिस्तान के दावे को नहीं मानते। यह पाकिस्तान के लिए न सिर्फ एक राजनयिक हार थी, बल्कि यह भी संकेत था कि उसके पारंपरिक सहयोगी संकट के वक्त किनारा कर सकते हैं।
इस पूरे घटनाक्रम ने पाकिस्तान की संसद और राजनीतिक हलकों में सवालों का तूफ़ान खड़ा कर दिया है। विपक्षी नेताओं ने मांग की है कि सरकार SMDA की पूरी जानकारी सार्वजनिक करे और संसद में बहस कराई जाए, ताकि असली स्थिति साफ हो सके। आलोचकों का कहना है कि अगर ऐसा कोई रक्षा समझौता था, तो फिर सऊदी अरब ने पाकिस्तान के समर्थन में कोई बयान क्यों नहीं दिया, या कम से कम अफगानिस्तान पर दबाव क्यों नहीं बनाया? कुछ विश्लेषकों ने यह भी कहा है कि सऊदी अरब अब पाकिस्तान की बजाय भारत और खाड़ी की स्थिर अर्थव्यवस्थाओं के साथ गहरे आर्थिक रिश्ते बनाने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है।
पाकिस्तान-सऊदी सामरिक पारस्परिक रक्षा समझौते (SMDA) को लेकर अब कई लोग दावा कर रहे हैं कि इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया था, असल में व्यावहारिक रूप से इसका कोई अस्तित्व ही नहीं था। जबकि, पाकिस्तान ने दावा किया था कि इस रक्षा सौदे के मुताबिक, सऊदी पर हमला पाकिस्तान पर और पाकिस्तान पर हमला सऊदी पर हमला माना जाएगा। लेकिन, सऊदी ने सिर्फ एक सामान्य अपील जारी कर शहबाज शरीफ के डिफेंस पैक्ट की पोल खोल दी।
सऊदी-पाकिस्तान समझौता किसी काम का नहीं!
हैरानी की बात देखिए कि तालिबान और पाकिस्तान के बीच सीजफायर, सऊदी अरब ने नहीं, बल्कि कतर ने, तुर्की के सहयोग से करवाया। इसके अलावा महत्वपूर्ण बात यह है कि इस सीजफायर समझौते में भी तालिबान ने बाजी मार ली। तालिबान के अधिकारी, कतर के आधिकारिक युद्धविराम बयानों से "डूरंड रेखा" और "सीमा" शब्द को हटवाने में कामयाब रहे, जबकि पाकिस्तान ने युद्धविराम समझौते के बाद कहा था कि समझौते में डूरंड लाइन विवाद भी शामिल है। इसका मतलब यह हुआ कि अफगान तालिबान ने फिर साबित कर दिया कि वे पाकिस्तान के दावे को नहीं मानते। यह पाकिस्तान के लिए न सिर्फ एक राजनयिक हार थी, बल्कि यह भी संकेत था कि उसके पारंपरिक सहयोगी संकट के वक्त किनारा कर सकते हैं।
इस पूरे घटनाक्रम ने पाकिस्तान की संसद और राजनीतिक हलकों में सवालों का तूफ़ान खड़ा कर दिया है। विपक्षी नेताओं ने मांग की है कि सरकार SMDA की पूरी जानकारी सार्वजनिक करे और संसद में बहस कराई जाए, ताकि असली स्थिति साफ हो सके। आलोचकों का कहना है कि अगर ऐसा कोई रक्षा समझौता था, तो फिर सऊदी अरब ने पाकिस्तान के समर्थन में कोई बयान क्यों नहीं दिया, या कम से कम अफगानिस्तान पर दबाव क्यों नहीं बनाया? कुछ विश्लेषकों ने यह भी कहा है कि सऊदी अरब अब पाकिस्तान की बजाय भारत और खाड़ी की स्थिर अर्थव्यवस्थाओं के साथ गहरे आर्थिक रिश्ते बनाने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है।
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