वाशिंगटन, 10 मई . भारत के ऑपरेशन सिंदूर से जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में जान गंवाने वाले 26 पर्यटकों के साथ साल 2002 में पाकिस्तान में दहशतगर्दों के हाथे मारे गए अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल को न्याय मिलने से द वाल स्ट्रीट जर्नल की पूर्व रिपोर्टर आसरा क्यू. नोमानी की आंखें खुशी से नम हैं. पर्ल भी द वाल स्ट्रीट जर्नल में रहे हैं. कराची में डेनियल की हत्या के बाद गैर लाभकारी संगठन पर्ल प्रोजेक्ट की संस्थापक आसरा नोमानी ने कहा, ”इसके लिए भारत आपका शुक्रिया.”
नोमानी ने ऑपरेशन सिंदूर पर अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर लंबी पोस्ट अपलोड की है. उन्होंने लिखा है कि ऑपरेशन सिंदूर में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के भाई अब्दुल रऊफ असगर के मारे जाने से उनके मन को राहत मिली है. यही वह व्यक्ति है जिसने उनके साथी पत्रकार डैनियल पर्ल का पहले कराची से अपहरण किया. पर्ल को बाद में बहावलपुर ले जाकर उसका सिर कलम कर दिया. पर्ल की हत्या में उमर सईद शेख का भी हाथ था. उमर सईद शेख को कंधार हाईजैक के बाद रिहा किया गया था. इस रिहाई में अब्दुल रऊफ अजहर की भूमिका प्रमुख रही है.
नोमानी ने लिखा, ”मैंने पर्ल की हत्या के बाद जनवरी 2002 के अंत में बहावलपुर का नाम नाम सुना था. तब से मेरे दिल में बहावलपुर के नाम पर सिहरन होती है. इसके बाद मैंने पाकिस्तान को बेनकाब करने का बीड़ा उठाया. मैंने 23 वर्ष तक लगातार लिखा कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी और शीर्ष सैन्य कमांडर पंजाब के दक्षिणी प्रांत के बहावलपुर का इस्तेमाल घरेलू आतंकवादियों के छुपाने के लिए करते हैं. मैंने पाकिस्तान में किए गए भारत के ऑपरेशन सिंदूर का नाम सुना तो मेरे होठों पर फिर बहावलपुर का नाम उभरा. यह जानकर मेरी आंखें डबडबा गईं कि बहावलपुर में ऑपरेशन सिंदूर के तहत मारे गए आतंकवादियों में पर्ल का कातिल भी शामिल है.”
वो एक्स पोस्ट में साल 2001 का जिक्र करती हैं. नोमानी के अनुसार, पर्ल इसी साल दिसंबर में एक नोटबुक और एक कलम लेकर बहावलपुर गए थे. जनरल परवेज मुशर्रफ ने वादा किया था कि उन्होंने भारतीय संसद में हुए हमले के बाद पाकिस्तान के आतंकवादी समूहों को बंद कर देंगे. द वाल स्ट्रीट जनरल ने पर्ल को तब कराची भेजा. पर्ल ने बहावलपुर में आतंकवादी ठिकानों पर रिपोर्ट की. उसने यह जानते हुए जोखिम उठाया कि आतंकियों से उसकी जान को खतरा हो सकता है. आसरा ने लिखा है, ”डेनियल ने मुझे एक ई-मेल भेजा कि मैं अफगानिस्तान जाने के लिए उत्सुक हूं, लेकिन मैं मरने के लिए उत्सुक नहीं हूं.”
आसरा ने लिखा है, ”वह भी तब कराची में रिपोर्टिंग करती थीं. पर्ल मेरे साथ कराची में किराये के मकान में रहने लगा. 23 जनवरी, 2002 को वह एक इंटरव्यू के लिए इसी घर से बाहर निकला. मध्यस्थ आसिफ फारूकी ने आरिफ नामक एक व्यक्ति के माध्यम से एक इंटरव्यू की व्यवस्था की थी. पर्ल को यह नहीं पता था कि आरिफ आतंकवादी समूह हरकुतुल मुजाहिदीन के लिए काम करता है. और यह भी आरिफ का गृहनगर बहावलपुर ही था.” उन्होंने लिखा है पर्ल की हत्या के बाद पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा तो आरिफ के परिवार ने उसके अंतिम संस्कार का नाटक किया और उसे पाकिस्तान के दूसरे छोर पर मुजफ्फराबाद में एक बस में चढ़ा दिया गया.
नोरानी के अनुसार, आरिफ ने ही पर्ल को ब्रिटिश-पाकिस्तानी उमर शेख को सौंपा. वह 1990 के दशक में लंदन की मस्जिदों में कट्टरपंथी बना था. वह इन आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों में प्रशिक्षण लेने के लिए पाकिस्तान गया था. फिर उसने भारत में पर्यटकों का अपहरण किया. उसे पकड़ लिया गया और जेल में डाल दिया गया, लेकिन 31 दिसंबर, 1999 को उसे इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट 814 के अपहरण में बंधकों के बदले पाकिस्तान के आतंकवादी सरगना मसूद अजहर के साथ रिहा किया गया. यह खुशी है कि मसूद अजहर के परिवार के कई सदस्य बहावलपुर में भारत के ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए. पत्रकार आसरा कहती हैं कि पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसियां आतंकियों को भारत के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का यह कर्तव्य है कि वह आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करे.
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/ मुकुंद
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