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वाराणसी : पितृ पक्ष में प्रतिपदा का श्राद्ध करने के लिए उमड़े लाेग

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अनादि विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड गुलजार,पहले दिन लोगों ने किया त्रिपिंडी श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण

वाराणसी, 8 सितंबर (Udaipur Kiran) । भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई। उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी काशी में पितृपक्ष के प्रतिपदा श्राद्ध के लिए सोमवार को लाेगाें की भीड़ उमड़ पड़ी। प्रतिप्रदा श्राद्ध तिथि पर उनके परिजनाें ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए गंगा तट और अनादि विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध कर्म किया। तिथि पर लोगों ने पिंडदान, तर्पण और विधि विधान से श्राद्ध कर्म किया। जिनके पूर्वजों की अकाल मृत्यु हुई थी, उन्होंने श्रद्धापूर्वक कर्मकांडी ब्राम्हणों से त्रिपिंडी श्राद्ध कराया। श्राद्धकर्म के लिए दूर-दराज के प्रांतों से श्रद्धालु रविवार को ही शहर में आ गये थे। अलसुबह से ही गंगा तट और पिशाचमोचन कुंड गुलजार हो गया।

गया जाने के पूर्व पिशाचमोचन कुंड पर अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा निवेदित करने के लिए लोग श्राद्ध कर्म सुबह से करते रहे। माना जाता है कि तर्पण और श्राद्ध कर्म से पितृदोष से मुक्ति के साथ पितरों की आत्मा भी तृप्त होती है। तर्पण न करने से पितरों को मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा भी मृत्यु लोक में भटकती है। ऐसे में पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है।

पिशाचमोचन कुंड स्थित शेरवाली कोठी के वयोवृद्ध कर्मकांडी पं. श्रीकांत मिश्र और प्रदीप पांडेय ने बताया कि पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात ही स्व.पितृ तर्पण किया जाता है। पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके जीवन में सभी कार्य सिद्ध होते हैं और घर, परिवार, वंश बेल की वृद्धि होती है। पितृदोष के शमन के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है।

उन्होंने बताया कि सनातन हिन्दू धर्म में ये श्राद्ध कर्म सबके लिए है। पूर्वजों की आत्मा की प्रसन्नता के लिए कम से कम तीन बार त्रिपिंडी श्राद्ध अवश्य वंशजों को करना चाहिए। इससे अधिक बार भी कर सकते है। विमल तीर्थ पर श्राद्ध कर्म का इतिहास हजारों साल पुराना है। इस कुंड पर श्राद्ध कर्म का उल्लेख स्कंद महापुराण और गरुड़ पुराण में भी हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य नारायण कन्या राशि में विचरण करते हैं तब पितृलोक पृथ्वी लोक के सबसे अधिक नजदीक आता है। श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से है। जो मनुष्य उनके प्रति उनकी तिथि पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, अन्न, मिष्ठान आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं। इससे प्रसन्न होकर पितर अपने वंशजों को आशीर्वाद देकर जाते हैं। इसके पहले धर्म नगरी में रविवार को ही पितरों के प्रति श्रद्धा जताने के लिए तर्पण-अर्पण आदि के विधान भाद्रपद पूर्णिमा से आरंभ हो गए। मध्याह्न काल में लोगों ने मातृकुल के पितरों यथा नाना-नानी, परनाना, परनानी का श्राद्ध कर उनको तर्पण-अर्पण किया। श्राद्धपक्ष का यह पूरा पखवाड़ा पितृ विसर्जन 21 सितंबर तक चलता रहेगा। इस बीच में अपने पूर्वजों के निधन की तिथियों पर उनका श्राद्ध कर्म करते हुए लोग तर्पण-अर्पण करेंगे।

कैसे करें तर्पण

कर्मकांडी प्रदीेप पांडेय बताते है कि हाथों में जल और काला तिल लेकर अंगूठे और तर्जनी के मध्य से उसे गिराते हुए ओम पितृभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधा नम:&य मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। पिता, पितामह, प्रपितामह तथा इसी तरह मातृपक्ष के माता, मातामह, प्रमातामह का तर्पण पूरी श्रद्धा के साथ करना चाहिए। यदि इन सभी पूर्वजों की पुण्यतिथि ज्ञात हो, उनको उनकी तिथि पर और पुण्यतिथि न ज्ञात हो पूरे पक्ष भर प्रतिदिन तर्पण करते हुए सर्वपितृ अमावस्या को पितृ विसर्जन करते हुए ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन कराना चाहिए।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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