ईको टूरिज्म डेवलपमेंट बोर्ड की अनोखी पहल
लखनऊ, 25 मई . अपने विशेष आकर्षणों के लिए देश में प्रसिद्ध दुधवा नेशनल पार्क में पर्यटन बढ़ाने में जुटे उत्तर प्रदेश ईको टूरिज्म ईको डेवलेपमेंट बोर्ड ने अनोखी पहल की है. पार्क के आसपास बसी थारू जनजाति को पर्यटन से जोड़ा जा रहा है. इनके प्रसिद्ध खानपान, जीवनशैली और हस्तशिल्प को पर्यटकों तक पहुंचाने की तैयारी शुरू की गई है. ताकि स्थानीय लोगों की आय में भी वृद्धि हो. इसी क्रम में निदेशक पर्यटन प्रखर मिश्र के नेतृत्व में बोर्ड के अधिकारियों का दल पिछले दिनों थारू गांवों का दौरा किया था. यह जानकारी पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने दी.
पर्यटन मंत्री ने बताया कि दुधवा के जंगलों की गोद में बसे लखीमपुर खीरी जिले के नौ गांवों में फैली थारू जनजाति, जो सदियों से प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर जीवन व्यतीत करती आ रही है, अब अपनी संस्कृति और परंपराओं के जरिए अपनी पहचान को आर्थिक समृद्धि में बदलने को तैयार है. उत्तर प्रदेश इको-टूरिज्म डेवलपमेंट बोर्ड ने इस जनजातीय समुदाय के पारंपरिक व्यंजनों, हस्तशिल्प और जीवनशैली को पर्यटन का हिस्सा बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं. इसका उद्देश्य न केवल वन्यजीव पर्यटन का विस्तार करना है, बल्कि स्थानीय समुदाय को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना भी है. जयवीर सिंह ने बताया कि ऐसे पर्यटक जो थारू गांवों तक नहीं पहुंच सकते, उनके लिए अब थारू समुदाय की खासियतें रिसॉर्ट्स और होटल तक पहुंचाने की रणनीति तैयार की गई है. थारू रसोई से निकलने वाले स्वादिष्ट व्यंजन जैसे चावल के आटे से बनने वाला ढिकरी, खड़िया, कपुआ आदि को ठहराव स्थल रिजार्ट पर ही उपलब्ध कराई जाएगी.
जयवीर सिंह ने बताया कि यही नहीं, स्थानीय हस्तशिल्प जैसे मूंज, कास, जूट और सूत से बने थारू शिल्प भी अब थारू शिल्पग्राम और स्थानीय स्टालों के माध्यम से पर्यटकों के लिए उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इन उत्पादों को ठहराव स्थल भी उपलब्ध कराया जाएगा. ये उत्पाद केवल वस्तुएं नहीं हैं, बल्कि एक जीवित परंपरा की कहानी कहते हैं. ईको टूरिज्म डेवलपमेंट बोर्ड थारू समाज की लोकनृत्य और संगीत परंपराओं को भी सामने लाने का प्रयास कर रहा है. सखिया, देवली, धमार, झुमरा और होरी गीत जैसे लोक नृत्य और गीत अब सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए पर्यटकों तक पहुंचाए जाएंगे. यह न केवल यात्रियों के अनुभव को समृद्ध करेगा, बल्कि कलाकारों को मंच और सम्मान भी दिलाएगा. इको-पर्यटन बोर्ड थारू समाज को होमस्टे स्थापित करने और पहले से बने होमस्टे में सुविधाएं बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहा है. ये होमस्टे पर्यटकों को केवल रहने की जगह नहीं, बल्कि एक पारंपरिक जीवनशैली का अनुभव देते हैं, जहां मेहमान घर के सदस्य की तरह रहते हैं, स्थानीय व्यंजन खाते हैं और रीति-रिवाजों को समझते हैं.
जयवीर सिंह ने बताया कि दुधवा टाइगर रिजर्व, जो देश के प्रमुख जैव विविधता स्थलों में से एक है, केवल वन्य जीवों का घर नहीं है बल्कि यह थारू जनजाति की संस्कृति और ज्ञान का भी केंद्र है. इस जनजाति को स्थानीय वनस्पतियों, औषधीय पौधों और मौसमी बदलावों की गहरी समझ है, जिससे ये वन्य क्षेत्र के प्राकृतिक संरक्षक भी हैं. इस पहल की सराहना करते हुए कहा, जब इनकी संस्कृति को पर्यटन से जोड़ा जाएगा, तो इससे न केवल पर्यटकों को एक समग्र अनुभव मिलेगा, बल्कि जनजातीय समुदाय भी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा.”
/ बृजनंदन
You may also like
BSF का बड़ा खुलासा! जाने राजस्थान बॉर्डर पर कैसे नाकाम हुई पाक की नापाक कोशिशें ? बोले रहीमयार खान एयरबेस की गई थी हथियारबंदी
Stocks To Watch: शेयर बाजार में कल दिखेगा एक्शन, JK Cement, NTPC, Paytm और Bharti Airtel समेत देखें कौन कौन है शामिल
विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने पर बोले केंद्रीय मंत्री, 'विकसित भारत की तरफ बड़ा कदम'
छत गिरने से सब-इंस्पेक्टर की मौत, तूफान की वजह से हादसे की आशंका
यमुनानगर: कुछ घंटों की बारिश से शहर हुआ जलमग्न, कालोनियों में घुसा पानी