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दादी ने जीवनभर प्रेम, एकता और भाईचारे का संदेश दिया: राजयोगिनी बीके मोहिनी दीदी

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आबूरोड, 25 अगस्त (Udaipur Kiran) । ब्रह्माकुमारीज़ की पूर्व मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि की 18वीं पुण्यतिथि देशभर में विश्व बंधुत्व दिवस के रूप में मनाई गई। मुख्यालय शांतिवन में देशभर से पहुंचे पांच हजार से अधिक लोगों ने दादी को श्रद्धांजलि अर्पित कर उनकी शिक्षाओं को जीवन में अपनाने का संकल्प लिया। दादी की स्मृति में बने प्रकाश स्तंभ को विशेष रूप से फूलों से सजाया गया था। जहां सुबह 8.15 बजे सबसे पहले मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मोहिनी दीदी, अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी दीदी, अयोध्या से आए जगतगुरु जियर स्वामी करपात्री महाराज एवं वरिष्ठ पदाधिकारियों ने दादी को श्रद्धांजलि अर्पित की।

25 अगस्त 2007 को दादी प्रकाशमणिजी यह नश्वर देह त्याग कर अव्यक्त हो गई थीं। सुबह 10.30 बजे से डायमंड हाल में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया।

इसमें मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मोहिनी दीदी ने कहा कि दादी ने सभी के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया। उनके हमेशा शब्द होते थे कि मैं तो निमित्त मात्र हूं। शिव बाबा ही यह यह ईश्वरीय विश्व विद्यालय चला रहे हैं। दादी ने जीवनभर प्रेम, एकता और भाईचारे का संदेश दिया। दादी हमेशा कहती थीं कि प्रेम और एकता में वह शक्ति है जो बड़े से बड़े कार्य आसान हो जाते हैं। उन्होंने प्रेम की शक्ति से सारे विश्व को एक कर दिया था। दादी का प्रेम ही था कि लोग सरहदों की दीवारों को भुलाकर एकता के सूत्र में बंधते गए। उनकी शिक्षाएं, योगी-तपस्वी जीवन, विश्व बंधुत्व की सोच आज भी लाखों लोगों का मार्गदर्शन करती है।

अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी दीदी ने कहा कि दादी का कहना और मेरा करना। मैंने कभी भी दादी को किसी सेवा के लिए न नहीं कहा। दादी की शिक्षाओं के आधार पर ही आज भी इस ईश्वरीय विश्वविद्यालय को संभाल रही हूं। मुझे आज भी पल-पल दादी की सूक्ष्य उपस्थिति महसूस होती है। संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके संतोष दीदी ने कहा कि दादी सदा सेवाएं में दिन-रात व्यस्त रहती थीं और भाई-बहनों को भी व्यस्त रखती थीं। दादी कहती थीं कि इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय में आया एक-एक रुपए दान का है। इसलिए हमें एक-एक रुपए को सफल करना है। अतिरिक्त महासचिव बीके करुणा भाई ने कहा कि दादी के सान्निध्य में वर्षों तक सेवाएं करने का सौभाग्य मिला। दादी के जीवन से अनेक शिक्षाएं मिलीं। दादी में नम्रता का गुण अद्वितीय था। वह छोटे-बड़े सभी का बहुत ही सम्मान करती थीं। उन्होंने सदा अपने दिव्य कर्मों से आदर्श प्रस्तुत किए।

अतिरिक्त महासचिव डॉ. बीके मृत्युंजय भाई ने कहा कि दादी के साथ मिलकर अनेक सेवाएं की। दादी एक-एक बात को बड़े ही प्यार से सिखाती थीं। वह यहां आने वाले मेहमानों का बहुत ध्यान रखती थीं। वरिष्ठ राजयोग प्रशिक्षक बीके सूरज भाई ने कहा कि दादी की प्यार भरी पालना, अपनापन का कमाल है कि दादी को देखकर हजारों कन्याएं, बेटियां ब्रह्माकुमारी बनती गईं। दादी के जहां-जहां कदम पड़े, वहां सेवाएं तेज गति से बढ़ती गईं। दादी से मिलकर, दादी को देखकर सभी को अपनेपन की फीलिंग आती थी। हर कोई दिल से कहता था मेरी दादी।

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(Udaipur Kiran) / रोहित

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