नई दिल्ली, 29 जुलाई (Udaipur Kiran) । उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान बेंच राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों के समक्ष विधेयकों को प्रस्तुत करने पर संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विकल्पों पर भेजे गए रेफरेंस पर 19 अगस्त को सुनवाई करेगी। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली संविधान बेंच ने ये आदेश दिया।
संविधान बेंच इस बात पर सहमत हुई कि पहले एक घंटे में केरल और तमिलनाडु सरकारों को इस रेफरेंस की स्वीकार्यता पर प्रारंभिक आपत्तियां जताने पर सुनवाई करेगी। उसके बाद अटार्नी जनरल की दलीलों के सुनने के लिए 19, 20, 21 और 26 अगस्त को समय दिया जायेगा। संविधान बेंच 28 अगस्त और 2, 3 और 9 सितंबर को रेफरेंस का विरोध कर रहे पक्षों की दलीलें सुनेगी। किसी पक्ष की जवाबी दलीलें सुनने के लिए संविधान बेंच ने 10 सितंबर की तिथि नियत करने का आदेश दिया। कोर्ट ने सभी पक्षों को अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने के लिए 12 अगस्त तक का समय दिया। संविधान बेंच ने इस मामले में वकीलों से समन्वय रखने के लिए वकील अमन मेहता को केंद्र के लिए और निशा रोहतगी को रेफरेंस का विरोध करने वालों के लिए नोडल वकील नियुक्ति किया।
संविधान बेंच ने 22 जुलाई को केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था। संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से इस मसले पर 14 संवैधानिक प्रश्नों पर राय मांगी है। राष्ट्रपति को किसी भी कानूनी या संवैधानिक मसले पर उच्चतम न्यायालय की सलाह लेने का अधिकार है। सतलुज यमुना लिंक नहर विवाद का मसला भी तत्कालीन राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय के पास रेफर किया था।
राष्ट्रपति का ये रेफरेंस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु के राज्यपाल की ओर से विधेयकों को लंबे अरसे तक लटकाने के मामले में फैसला सुनाया था। जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों पर राज्यपाल को फैसला लेने के लिए दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए किसी विधेयक पर फैसला लेने या राज्यपाल के पास भेजने के लिए अधिकतम एक महीने के अंदर फैसला लेना होगा। दिशा-निर्देश के मुताबिक अगर राज्यपाल विधेयक को राज्य सरकार की सलाह के विपरीत राष्ट्रपति को सलाह के लिए रखते हैं तो उस पर भी अधिकतम तीन महीने के अंदर फैसला लेना होगा। उच्चतम न्यायालय ने अपने दिशा-निर्देश में कहा था कि अगर राज्य विधानसभा किसी विधेयक को दोबारा पारित कराकर राज्यपाल को भेजती है, तो उस पर अधिकतम एक महीने में फैसला करना होगा।
(Udaipur Kiran) /संजय
(Udaipur Kiran) / सुनीत निगम
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