मंडी, 31 मई . नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि प्रदेश में नियम, कानून कायदों को खुलेआम चुनौती दी जा रही है और मुख्यमंत्री मूकदर्शक बनकर बैठे हुए हैं. पद पर ना रहने वाला एक व्यक्ति पद पर होने का दावा करते हुए हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करता है और सरकार उसके खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं करती है. प्रदेश की राजधानी का पूर्व पुलिस मुखिया अपने पद पर न होते हुए भी प्रदेश के एडवोकेट जनरल की सहमति का हवाला ( पुनर्विचार याचिका पेज 08, पैरा 02 में वर्णित) देकर न्यायालय के फैसले को चुनौती देता है और एडवोकेट जनरल और मुख्यमंत्री खामोश होकर देखते हैं. सबसे हैरानी की बात यह कि इसमें वह उस परिवार को भी पार्टी बनाता है जिसने स्व .विमल नेगी के रूप में अपने परिवार का सब कुछ खो दिया है.
मंडी से जारी बयान में आज जय राम ठाकुर ने कहा कि आज सरकार इस कदर बेबस हो चुकी है कि न तो एक अधिकारी द्वारा बार-बार अनुशासनहीनता करने पर उसके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है और न ही उसके द्वारा न्यायालय में झूठ बोले जाने पर उसे चुनौती दी जा रही है. आखिर सरकार की विवशता क्या है? जो हर दिन सरकार की किरकिरी होने के बाद भी सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है.
जयराम ठाकुर ने कहा कि यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि सीबीआई की जांच से वह सत्य भी सामने आएगा जिसे सरकार पूरी ताकत से छिपा रही है. इससे सरकार पर संकट खड़ा हो जाएगा. सरकार की कार्य प्रणाली देखकर हमने पहले दिन ही कहा था कि यह सरकार परिपक्व सरकार नहीं है और जनहित के बजाय अपनी हित और मित्रों के हित का ही ध्यान रखती है. सरकार प्रदेश के लिए कभी हितकारी सिद्ध नहीं होगी. अधिकारियों और नेताओं द्वारा भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं लांघने को लेकर हमने बार-बार मुख्यमंत्री को भी चेताया था. लेकिन मुख्यमंत्री को लगता था झूठ बोलकर और विपक्ष पर ही आरोप मढ़कर वह इस बला से बच जाएंगे. ढाई साल के कार्यकाल में ही यह साफ हो चुका है कि प्रदेश में सरकार नाम की कोई चीज है ही नहीं. उ
न्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कहते हैं कि वह न्याय की गद्दी पर बैठे हैं तो वह जान लें कि न्याय का तकाज़ा पक्षपात नहीं निष्पक्षता है. उन्हें राष्ट्रीय कवि मैथिली शरण गुप्त की पंक्तियां – अधिकार खोकर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है. न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है. याद रखनी चाहिए.
जयराम ठाकुर ने कहा कि प्रदेश की स्थिति बहुत हास्यास्पद है. यहां पर महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों को सामान्य सेवा नियमावली और प्रक्रिया का ज्ञान भी नहीं है. जब हिमाचल प्रदेश राज्य लिटिगेशन पॉलिसी स्पष्ट कहती है कि कोई भी सरकारी अधिकारी अपने अधिकारों पर अतिक्रमण होने पर ही सरकार द्वारा पारित प्रशासनिक आदेशों के खिलाफ याचिका दायर कर सकता है न्यायायल के खिलाफ नहीं तो यह पुनर्विचार याचिका कैसे दाखिल हुई.
उन्होंने कहा कि जब 27 मई को ही नए अधिकारी को शिमला के पुलिस अधीक्षक का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया है ऐसे में यह ऊहापोह की स्थिति क्यों है? आज शिमला का एसपी कौन है? क्या इसमें भी कोई संशय है? यह सरकार की नाकामी का ही परिणाम हैं जिसके कारण यह स्थिति बनी है. सख्त कार्रवाई न करके सरकार अपनी ही फजीहत करवा रही है.
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/ मुरारी शर्मा
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