मध्यप्रदेश से एक बड़ी खबर सामने आ रही है, जो सरकारी कर्मचारियों के चेहरों पर मुस्कान ला सकती है। मध्यप्रदेश सरकार ने सरकारी नौकरियों में लागू दो बच्चों की सीमा की शर्त को खत्म करने का फैसला किया है। यह नियम, जो 26 जनवरी 2001 से लागू था, अब इतिहास बनने जा रहा है। जल्द ही इस प्रस्ताव को कैबिनेट में लाया जाएगा। आइए, इस खबर को विस्तार से समझते हैं।
कर्मचारियों को मिलेगी बड़ी राहतइस फैसले का सबसे बड़ा फायदा उन सरकारी कर्मचारियों को होगा, जिनके सिर पर तीसरी संतान होने की वजह से नौकरी जाने या कार्रवाई का डर मंडरा रहा था। नई व्यवस्था लागू होने के बाद तीसरी संतान से जुड़े सभी लंबित मामले अपने आप खत्म मान लिए जाएंगे। यानी अब ऐसे कर्मचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। हालांकि, 2001 से अब तक जिन कर्मचारियों पर कार्रवाई हो चुकी है, उन्हें इस फैसले का लाभ नहीं मिलेगा।
सबसे ज्यादा प्रभावित ये विभागइस नीति से सबसे ज्यादा प्रभावित मेडिकल एजुकेशन, हेल्थ, स्कूल शिक्षा और उच्च शिक्षा जैसे विभाग हैं। खास तौर पर स्कूल शिक्षा विभाग में 8,000 से 10,000 ऐसे मामले होने का अनुमान है। एक चौंकाने वाला उदाहरण यह भी है कि एक जज को भी तीसरी संतान होने की वजह से अपनी नौकरी गंवानी पड़ी थी। मध्यप्रदेश सरकार का यह कदम राजस्थान और छत्तीसगढ़ की तर्ज पर है, जहां इस तरह की पाबंदी को 2016 और 2017 में ही हटा दिया गया था।
मोहन भागवत का बयान बना चर्चा का केंद्रराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान ने भी इस फैसले को गति दी है। उन्होंने कहा था कि देश की जनसंख्या नीति 2.1 की औसत पर आधारित होनी चाहिए, यानी हर परिवार में औसतन तीन बच्चे होने चाहिए। उनके इस बयान के बाद नीति में बदलाव की प्रक्रिया तेज हो गई। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के मुताबिक, मध्यप्रदेश की प्रजनन दर 2.9 है, जो राष्ट्रीय औसत 2.1 से ज्यादा है। पन्ना (4.1), शिवपुरी (4.0) और बड़वानी (3.9) जैसे जिलों में यह दर काफी ऊंची है, जबकि भोपाल में सबसे कम (2.0) है।
कर्मचारियों की परेशानी होगी खत्मपिछले कुछ सालों में मध्यप्रदेश में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां तीसरी संतान होने की वजह से कर्मचारियों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। ऐसा ही एक मामला है रहमत बानो मंसूरी का, जिन्हें तीसरी संतान होने के कारण सरकारी शिक्षिका के पद से बर्खास्त कर दिया गया था। रहमत ने आरोप लगाया था कि उनके ब्लॉक में 34 अन्य शिक्षकों के भी तीन या उससे ज्यादा बच्चे हैं, लेकिन कार्रवाई सिर्फ उनके खिलाफ हुई। यह मामला अब हाईकोर्ट में है। इस नए फैसले के बाद अब हजारों परिवारों को राहत मिलने की उम्मीद है। सभी की निगाहें अब कैबिनेट के फैसले पर टिकी हैं।
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